Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 149
________________ १४४ जईने एम बोलवा लाग्यो के शु तुं मुनि छे के मुणियो छे ? इत्यादि त्यारे ते तपस्वीए पेली वार तो तारुं कठोरवचन सहन कयु अने शांत रह्यो पग पछो ज्यारे तुं वारंवार एg ने एq कठोर वचन बोलतो रह्यो त्यारे तेणे तने बाळीने भस्म करी नाखवा माटे तारा उपर तेजोलेश्या छोडी. तेगे छोडेली ए तेजोलेश्या भारे उग्र, महा प्रभावाळी अने पाणी वगेरे ठंडी वस्तुओ पडतां पण न ओलवी शकाय एवी--आघात न पामे एवी भारे शक्तिवाळी हती. छोडेलो ते तेजोलेश्या हजु तारा शरीरना भागने थोडी पण अड़ी न हती अटलामां में तेना सामथ्यने अटकाववा माटे बच्चे ज चन्द्र जेवी अने हिम जेवी खूब शोतळ एवो शोतलेश्या छोडी. ए शीतलेश्याना प्रभावने लीधे तारुं शरीर जरा पण दायुं नहीं अने जेवू छे तेवू ज बराबर जोईने तेनो कोपनो विकार शांत थई गयो अने ते वेसियायण तापस मने उद्देशीने एम कहेवा लाग्यो के, हे भगवंत ! मने खबर नहीं के आ तमारो शिष्य हो तो तमे आ मारो दुर्विनय क्षमा करो. आ बधी वात सांभळीने गोशाळो भयने लीधे बेबाकळो थई गयो अने भक्तिपूर्वक भगवंतने प्रणाम करीने कहेवा लाग्यो-हे भगवंत ! आवी तेजोलेश्यानी लब्धि केम करीने थाय ? भगवान बोल्या-हे गोशाला ! [पृ० ९०]जे मनुष्य निरन्तर-लागलागट छ छठनुं तप करी साथे आतापना ले अने पारणाने दिवसे नख साथे वाळेली मूठीमां माय तेटला लूखा उडदनी मात्र एवी एक मूठी आहार ले तथा एक चळु पाणी १ छ टंक न खावानुं व्रत छठ कहेवाय छे-पहेलां एक टंक भोजन छोडवू पछी उपराउपर चार टंक भोजन छोडवू अने पारणाने दिवसे पण एक टंक भोजन छोडवू आर्नु नाम छठतप. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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