Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 150
________________ पीए अने आ रीते छ महिना सुधी बराबर लागलागट करतो रहे तेने विपुल एवी तेजोलेश्यानी लब्धि सांपडे. भगवंते कहेलं आ तेजो. लेश्या पामवानुं विधान गोशाळाए बराबर ध्यानमा राख्यु. हवे एकवार स्वामीए कुम्मारगाम नगरमाथी सिद्धार्थपुर तरफ प्रस्थान कयु अने जेनी वात पहेलां आवी गई छे एवा तलना छोड़वाळी जग्या पासे पहोंच्या त्यारे गोशाळाए भगवंतने पूछयुहे भगवंत : मानुंछ के पेलो तलनो छोड़ उपज्यो नथी लागतो. भगवान बोल्या-भद्र ! एम न बोल, ते उपज्यो ज छे अने अमुक जम्यामां छे. एम भगवाने कह्या पछो गोशाळाने भगवानना वचनमां श्रद्धा न बेठी तेथी त्यां जे जग्या भगवंते बतावेली त्यां जईने एकांतमां उगेला ए तलना छोडनी तलनी सोंग पोताने हाथे फोडोने तेमांना एक एक तलने गणतो गणतो एम कहवा लाग्यो के-खरेखर तमाम जीवो आ रीते फरी फरीने पाछा वारंवार त्यां ज पोताना शरीरमां उत्पन्न थाय छे. ए प्रमाणे आ तलना छोड उपरथी गोशालाए एक सिद्धान्त स्थापित कर्यो तेनुं नाम पउट्टपरिहार-प्रवृत्तपरिहार प्रवृत्ति करवी एटले जन्म धरवो अने जन्म धरीने तेनो पछी परिहार करवो अने पाळु त्यां ज जन्मg अथवा पउपट्टपरिहार-प्रवृत्तपरिधार एटले जन्मधरवो अने पछी पण एनो ए ज जन्म घरवो. एवा पउपरिहाररूप नियतिवाद नामना सिद्धातनुं गोशाळाए सारी रीते अवलंबन कयु.. हवे ते कोईवार तेजोलेश्या शक्तिने साधवा माटे भगवानने छोडीने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 148 149 150 151 152 153 154