Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 145
________________ १४० अपराध-दोष छे. ए विधाता विविध जातना संविधानना-पात्रना पहेरवेशोद्वारा नटनी जेम परवश पडेला मनुष्यने विविध रीते नडे छे-नचावे छे, अत्यन्त विरुद्ध एवां पण काम करावे छे, अगम्य -- ज्यां जवा जेवू नथी तेनी साथे पण संगम संपडावे छे, माटे तुं संताप करवो मूकी दे, धैर्य धारण कर अने जे आवी पड्युं छे तेने सहन करी ले. तेणी बोली-पुत्र ! आ नहीं सहो शकाय एवं अने खूब छुपाववा जेवु दुःख आवी पड्युं छे. आ बनावने संभारं छं तो जीवq कठण बनो जाय छे. वजनी गांठ जेवू कठोर हृदय करीने ज जीq छु. [पृ०८७]मुज अभागणीनु ए सिवाय बीजी रीते जीववानुं कोई कारण नथी.हे वत्स! हवे तो कोई ऊँचा वृक्षनी शाखा उपर लटकी जईने एटले गळे फांसो खाईने अथवा एवी बीजी पण कोई रीते पोताना कुलने कलंकित बनेल एवा मारा जीवननो अंत करवानी मारी वांछा छे, माटे तुं मने रजा आप, हवे मारे माटे तुं ज पूछवा योग्य छो. वेसियायणे का-हे माता ! आवा नठारा विचार करवानी जरूर न थी. ज्यारे तने हुँ अहींथी वेश्याना हाथमाथी छोडावं त्यारे तप अने नियमो वडे तुं शरण वगरना तारा आत्मानी साधना करजे, मृत्यु आव्या विना अकाळे आपघात करवो ए पण एक दोष-पाप छे एम आपणा मतना शास्त्रोमां कहेल छे. एम कहीने अने तेणीने बराबर स्थिर करीने घणुं धन आपीने वेश्यानी पासेथी तेणे पोतानी माताने छोडावी दीधी. पछी तेणीने पोताने गाम लई गयो, जीवन दान आप्युं अने तेणीने धर्मना मार्गमां स्थिर करी. हवे एक वार आज बनाव अंगे विचार करतां करतां तेने पण वैराग्य आयो अने ते विचार करवा लाग्यो Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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