Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 118
________________ पूजारीनी वात सांभळीने लोको रोषे भराया अने तेओए त्यां आवीने लाकड़ीओ तथा मुक्का मारीने गोशाळाने खूब कूटयो, आ कोई घेलो छे, एम समजीने तेने सारी रीते मार मारीने एटले तेनुं शरीर खोखरुं करीने बहु वखते केमे करीने छोडी दीधो. ७. , गोशाळो मुकाया पछी स्वामी मद्दण नामना गाममां जाईने बलदेवना घरमां-मन्दिरमा फासु-निर्दोष प्रदेशमा प्रतिमा धारण करीने रह्या. ८ गोशालो अपलक्षणो होवाथी ते त्यां पण मुकुंदनी प्रतिमाना मुखमां पोतानी जननेन्द्रिय दईने मुनिनी पेठे अप्रमत्त उभो रह्यो. ९ त्यां पण पूर्वनी पेठे ज कोपे भरायेला गामलोकोए बहु वखत सुधी खूब खूब गोशालाने पीटयो-मार्यों अने पछी तेने छोड्यो. तेने छोड्या पछी. १० जिनेन्द्र त्यांथी निकली बहुसालग नामना गाम भणी जई त्यां शाळिवनमां धर्मध्यान उपर चड्या-धर्मध्यान करवा लाग्या. ११ त्यां सालज्ज नामनी व्यंतरीदेवी विना कारणे कोपे भराई अने त्यां रहेला जगगुरुने विविध उपसर्गों करवा लागी. १२. [पृ०६९] पछी ते पापी व्यन्तरी उपसर्गों करता करतां पोतानी मेळे ज थाकी गई त्यारे भगवाननी पूजा करीने जेवी आवी हती तेवी पाछी चाली गई. १३ १ अप्पमत्त अप्रमत्तनो एक अर्थ प्रमाद विनानो खूब सावधान. आ अर्थ मुनिपक्षे घटावबो. गोशालकना पक्षे अप्पमत्त-आत्ममत्त पोतानी जातमां मदोन्मत्त अथवा एवो प्रमत्त-प्रमादी के एनी जेवो कोई बीजो प्रमादी नथी एवो अथवा अल्पमत्त-थोड़ोमत्त-घेलो-गांडो-उन्मत्त. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154