Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad
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जन्मान्तरमां हितकर प्रवृत्ति माटे परायण हतो. प्रकृतिए सरळ मधुरभाषी, दाक्षिण्यवाळो अने पोताना नाम प्रमाणे गुणवाळो एटले निर्मल गुणरूप हरणाने पकडी राखवा सारू वग्गुरा - पाश समान हतो. स्वाभाविक प्रेमना पात्र जेवी भद्रा नामे तेनी स्त्री हती, ते वांझणी हती, पुत्रने माटे घणा देवदेवीओनी सेंकडो मानताओ करी, विविध प्रकारनां सैंकड़ो ओसड पीधां अने अम करीकरीने ए छेवट था की गई. बीजे कोई वखते ते सेठनी साथे पालखोमां बेठेली, साथै बधा स्वजनो हता अने जातजातनां भक्ष्य तथा भोजनवाळी कीमती अने सरस रसोई बनावी शके तेवा रसोयाओने साथै लइने मोटी धूमधाम साथे उजाणी माटे नीकळी. चालती घालती ते विविध प्रकारना पक्षी आता मधुर अवाजोने लीधे मनोहर तथा जातजातना उत्तम वृक्षोनां सुगन्धी फूलोना परिमळथी महेकता सुन्दर एवा शकटमुख नामना उद्यानमां पहोंची. त्यां घणा वस्त्रत सुधी सरोवरमां जलक्रीडा कर्या पछी फूलोने चुंटतो वग्गुर सेठ अने तेनी स्त्री सेठाणी ए बन्नेए खलभली गयेल शिखरवालं, पथरा भींतमांथी नीकली पडचा छे एवं अने सुन्दर एवा मजबूतथांभला तूटी गयेला तथा पडशाल पण तूटी गइ छे एवं एक देवळ जोयुं. एवा ए देवळने जोइने ते बन्ने कुतूहलने लीधे तेमां पेठां. तेमां तेमणे जे शरदऋतुना चन्द्रनी जेम अत्यन्त प्रशांत आकृति - वाळी, घरेणां विनानी छतांय जगतनां कीमती रत्नो वडे सुशोभित [०७१] होय एवी शोभावाळी अने दर्शनमात्रथी चिंतामणीनी पेठे जेनुं अतिशयवालुं परम माहात्म्य जणाई आवतुं हतुं एवी श्री
भद्रा
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