Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 135
________________ १३० वसति-रहेठाण न मळता शून्य-उजड-घरोमां अने झाडना मूळ पासे एटले झाडनी नीचे ए चोमासुं ध्यानपरायण बनीने वीतावे छे. १० ए चोमासु पूरूं थतां स्वामी सिद्धार्थपुरमां आव्या अने त्यांथी कुम्मार गाम तरफ प्रस्थान कयु. ते सिद्धार्थपुर अने कुम्मार गामनी बेनी [पृ० ८०] वच्चे तलना खेतर पासे थई जता भगवानने गोशाळाए पछy--आ तलनो छोड़ नीपजशे के नहीं ? पछी तथाप्रकारनी भवितव्यताने लीधे जिन भगवान पोते ज बोल्याहे भद्र ! ए छोड नीपजशे पण साते पुष्पना जीवो मरीने आ ज तलना छोडनी एक तलशिंगमा सात तलरूपे उत्पन्न थशे. भगवाने कहेली आ वात उपर श्रद्धा नहीं धरावता अनार्य एवा गोशालके तलना छोड पासे जईने मूल साथे चोंटेल माटीना ढेफा साथे ए छोडने उखेडी नाख्यो अने एकांते एक कोर फेंको दीधो. आ वखते आसपास रहेनारा देवोए भगवाननुं वचन साचं पाडवा वादळांनी रचना करी, पाणी वरस्युं अने ए तलनो छोड जीवतो थयो, हवे ते तरफ जती आवती गायोनी खरी वडे चंपातो ए छोड पाणीथी पोची थयेल जमीनमां चोंटो गयो अने धीरे धीरे तेना मूळ मजबूत रीते जामी गयां, एने अंकुरो आव्यां-खील्यां-अने ते फुलवा लाग्यो. वळी भगवान कुम्मारगाम नामना नगरे पहोंच्या, ते नगरनी बहार सूर्यमंडळ उपर नजरने स्थिर करीने, बन्ने हाथ रूप परिघ (परिव ऐटले बारणुं बंधकर्या पछी पाछल भीडवानी Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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