Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 133
________________ १२८ आगळ कयुं ते ज प्रमाणे कोई मुसाफरने दया आवतां तेणे ए झाडीमाथी गोशाळकने बहार काढी छोडी मूक्यो अने त्रणजगतना गुरु गोशाळक छूटो थतां आठमुं चोमासुं करवा सारु राजगृह नगर तरफ चालवा लाग्या, त्यां तेमणे विविध अभिग्रहो साथे चार महिनाना उपवास कर्या अने ए उपवास पूरा थतां पारणा माटे बहार आहार ग्रहण कर्यो. हवे भगवानने एम लाग्यु के हजु नहीं निर्जरेलु घणुं कर्म बाकी छे. एम विचारी स्वामीए फरीवार पण सहायकोनो दाखलो लईने-सहायकोना दृष्टांतनो विचार करता पोताना कर्मनी निर्जरा माटे लाढा, वज्जभूमि अने शुद्धभूमि नामना अत्यन्त दुष्ट लोकोनी वसतिवाळा म्लेच्छदेशमां गोशाळक साथे विहार को. ते देशोमां वसता अनार्य लोकोए कदी पण धर्मनो अक्षर सांभळ्यो होतो नथी, ए लोको अनुकम्पा विनाना निर्दय, हाथमां खरडायेल लोहीवाळा अने परमाधार्मिक जमदेवनी सरखा होय छे. तेओ त्यां विहार करता भगवन्तने जोईने तेमर्नु अपमान करे छे, निन्दा करे छे, अने तथाप्रकारना बीजा उपायो द्वारा हेरान करे छे. करडाववा सारु दुष्ट एवा डाघिया कूतरा के शिकारी कूतराओने स्वामीनी सामे छोडी मेले छे. वळी, रेचन शरीरनी खाल छोलवी, क्षारनो लेप वगेरे कष्टमय चिकित्सा करता वैद्यने जेम रोगी अभिनन्दन आपे छे, १ तेम जगन्नाथ पण घोर उपसर्ग करनारा तमाम लोकोने उपकारी बंधुनी बुद्धिथी राजो थईने सारी नजरथी जूए छे. २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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