Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 127
________________ विविध जातना भक्ष्यो अने व्यंजनोथी युक्त तथा ओदन, चरुपाक वगेरे वस्तुओथी युक्त एवो बळी जे लोको जिन भगवान पासे धरे छे ते धन्य लोको डटायेल सुखनो निधि खोदवा माटे ज तेम करे छे. १८ __ अथवा आटलं ज शा माटे ? जे कांई पण सुन्दरतम चीज होय तेने पुण्यवंत लोक तीर्थंकरोनी सामे धरवाना काममा लेता होय छे. १९ अनिदान एटले निदान विनानु-कोई जातनी अपेक्षा-आशा राख्या विना देवामां आवतुं दान सुगतिना संगमर्नु कारण छे. एवं ज दान पुण्यानुबंधी होवाथी कल्याणर्नु कारण थाय. २० ए दानना वळी त्रण भेद कहेला छे ----अभयप्रदान, ज्ञानदान अने जे लोको धर्ममा प्रवृत्त छे तेमने माटे वळी त्रीजं उपष्टंभ दान छे. उपष्टंभ दान एटले सहायता करवी- धर्मप्रवृत्तिपरायण लोकोने हरप्रकारे सहायता करवी. २१ तेमां अभयदान लौकिक (शास्त्रमां) पण छे अने लोकोत्तर (शास्त्रमा) पण प्रसिद्ध छे. जे लोका सिद्धि मेळववाना रसवाळा छे तेओ ए बन्ने प्रकारनुं अभयदान करे ए अंगे तमाम अवस्थाओमा पण कोई जातनो निषेध नथी. लोकोत्तर शास्त्र एटले जनशास्त्र अने लौकिकशास्त्र ऐटले महाभारत, पुराण, भागवत वगरे शास्त्रो. पृ०७५] अनाज वगरनो खेतीने, विवेक वगरना राजाने कोई वखाणतुं नथी तेम पूर्वोक्त प्रकारना दान वगरना धर्मने कदी पण डाह्या माणसो वखाणता नथी. २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154