Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 128
________________ ते ज्ञानदान तो वळी दीवानी पेठे तमाम पदार्थोने अथवा तमस्थ-अंधारामा रहेला पदार्थोने प्रकाशित करे छे अने भवसमु. द्रमां पडेला जंतुओने तारवा माटे मजबूत वहाण जेवं छे. २४ विषम मिथ्यात्वरूप भयंकर अरण्यमां जेओ उन्मार्गे चडी गयेला जेवा छे तेमने माटे तो सन्मार्गनुं दर्शक अने मुक्तिनगरना उत्तम सार्थवाह समान छे. २५ __जेओ धर्ममां परायण साधु-मुनिजन छे तेमने सहायता करवारूप त्रीजुं दान छे. ए दान तो एवा मुनिजनोने औषध, वस्त्र, पात्र, कंबल वगेरे वस्तुओ आपीने थई शके छे. २६ ए मुनिओ महानुभावो छे अने तमाम जातनी पापप्रवृत्तिओथी तदन छेटे रहेनारा छे. एमने त्रीजु दान देवाथी तेओ संयम, तप बगेरनी आराधना करी शके छे. एमने आहार वगेरे न मळे तो तेओ संयम तप वगेरे धर्मनी आराधना केवी रीते करी शके ? २७ गृहस्थधर्मी लोके मात्र आटलो ज दानधर्म करे तोय लांबा भवरूप समुद्रनो पार पामी शके छे. केम के तेओ मुनिओने भोजन वगेरे आपीने तेमनी धर्माराधनामां सहायक बने छे. २८ - आ जातनां दान देनारा धन सार्थवाह, श्रेयांसकुमार अने मूलदेव वगेरे महानुभावो जगमां प्रसिद्ध छे अने एमनां दृष्टांतो आ प्रमाणे शास्त्रमा पण सुप्रसिद्ध छे. २९ १ मूळ गाथामां 'तमत्थाणं'छे तेनो पदच्छेद एक तो तं-तत्अत्थाणं अर्थानाम् करवो अने बीजो पदच्छेद तमस्थानाम् करवोबन्ने रीते अहीं अर्थ बतावेल छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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