Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 129
________________ १२४ हे देवानुप्रिय ! आ प्रमाणे में तने त्रण प्रशस्त पदार्थ कया एटले मन्दिर कराव, प्रतिमानी पूजा करवी अने दान देवुं ए त्रण बात कही. तेमांनी प्रथम वात तो तें तारी मळे ज करेली छे. ३० बाकीनी बे वात जेओ श्रावकधर्ममां कुशळ बुद्धिवाळा छे तेओ करी शके छे माटे तुं श्रद्धा अने ज्ञानना साररूप एवा गृहस्थ धर्मनो स्वीकार कर. ३१ आ रीते गुरुए परमार्थवाळी वास्तविक बात कही देखाड्या पछी ते वग्गुर शेठना मनमां उत्तम विवेक उत्पन्न थयो एटले गुरुना चरणकमळने प्रणाम करीने ते कहेवा लाग्यो – हे भगवंत ! तमे मने सारो बोध आप्यो. [१०७६ ] हवे आप मने श्रावकधर्मनी समजण आपो अने शुं युक्त छे तथा शुं अयुक्त छे ते अंगे शिखामण आपो. पछी आचार्ये अनेक भेद प्रभेद रूप हजार शाखावाळो अने शुभ फळना अथवा सुखरूप फळना समूहने आपनारो एवा श्रावकधर्मरूप कल्प वृक्ष अंगे विस्तारथी समजण आपी अने ए वग्गुर सेठे सारा भाव साथै श्रावक धर्मनो स्वीकार कर्यो. त्यारथी मांडीने ए शेठ जिन भगवाननी आठ प्रकारे पूजा करवामां परायण रहे छे अने अने ए रीते मुनिओने दान देवामां पण चित्तने श्रावकधर्मने पाळे छे - आचरे छे. विशेष रीते धर्मपरायण थयो छे. उजमाळ राखे छे पुत्रनो जन्म थया पछी तो ते हवे एक वार ते शेठ धोळां कपडां पहेरीने फूल वगेरेनी समग्र परिवार साथे श्री एवी पूजा सामग्री साथै लईने पोताना तमाम - मल्लिजिननी प्रतिमाना पूजन माटे प्रवृत्त थयो. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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