Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 123
________________ ११८. भटकाड्युं अने पछी तेओ आम कहेवा लाग्यां- हे देव ! तमारी कृपार्थी जो हवे अमने पुत्र के पुत्री थशे तो अमे आ तमारा भवनने कनकना कलशोवाळा शिखरवा करावी. तेमां मोटा मोटा सुन्दर थांभलावाळी विशाळ शाळा - ओशरी करावीशुं. तेनी फरतो उत्तम कोट करावीशुं. कोट उपर सेंकडो कांगरा मुकावीने सुशोभित करावीशुं तथा तेनां एवां सुन्दर बारणां करावीशुं के जे बारणामां सारा आकारवाळी मजबूत पूतळीओ कोतरावेल हशे . [पृ०७२] वळी, अमे हमेशां पण तमारा तरफ भक्तिपरापण रहीशुं तथा निरन्तर तमारी पूजानो महिमा करीशुं - ए रीते कहीने तेओ बन्ने उद्यानक्रीडा करीने पोताने घेरे गयां. हवे तेमनी भक्तिना प्राबल्यने लीधे जेनुं हृदय खेंचायेल छे एवी मन्दिरनी आसपास रहेनारी वानबंतर देवीना प्रभावथी भद्रा सेठाणीने गर्भ रह्यो, गर्भ रहेवाथा शेठने परचो मळ्यो एटले जे देवनी पोते स्तुति करी हती ते फळी खरी. गर्भ रह्यो त्यारथी - ते ज दिवसथी - जिनमन्दिरनुं समारकाम शरू करी दीधुं अने जलदी जलदी मन्दिरनो जीर्णोद्धार कर्यो, सवार, बपोर अने सांज एम त्रणे काळ पांच रंगना सुगन्धी फूलो वडे पूजा शरू थई, उत्तम विलासिनीओनुं नाट्य शरू थयुं, मधुर मधुर गूंजतां एवा चार प्रकारां वाजां वगडावा मांड्यां. आम करतां करतां तेमना दिवसो वीतवा लाग्या हवे अनियत विहारे फरता फरता सूरसेन नामे आचार्य जिनवन्दन माटे त्यां आवी चड्या, आचार्यने रहेवा योग्य स्थानमां तेओ व्यां रह्या, सूत्रवाचननी पोरसी पूरी थतां तेओ मल्लि जिनना १ पुरुष प्रमाण छाया ज्यां सुधी होय त्यां सुचीनों समय पोरसी ( पौरषी कहेवाय ! सूत्रवचन माटे एटलो समय नियत होय छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only D www.jainelibrary.org

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