Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 120
________________ ११५ किन्तु आ तो ते ज पुरुष छे जेणे ते वखते लोको मागे ते करताय वधारे कनकनी धाराओने पाणीनी धाराओ पेठे एक वरस सुधी वरसावेल हती अने याचकोना कुंटुंबने तेमनी इच्छा करतां वधारे सोनुं आपीने शांत कर्या हता २१ आ तो श्रीधर्मचक्रवर्ती छे, सिद्धार्थ महाराजाना कुलमां केतुसमान छे अने जेमणे पोतानी मेळे ज प्रव्रज्या स्वीकारेल छे ते महावीर जिन पोते छे. २२ (पृ०-७०) अथवा जेमना चरणमां देवो, खेचरो अने राजाना वृन्दो बन्दन करे छे एवी आमनी (महावीरस्वामीनी) कीर्तिं पण शुं तमे पहेलां सांभळी नथी ? २३ .. तमने मारा वचनमां श्रद्धा न बेसती होय तो निपुण दृष्टिथी तमे चक्र गज वज्र अने कमळनी निशानीवाळा तेमना हाथ ज जोई ल्यो. २४ आ रीते 'आ महावीर छे' एवी नक्की खात्री थया पछी राजा जितशत्रुओ विशेष रीते स्वामीनो सत्कार करीने गोशाळानी साथे श्रीजिनेन्द्र महावीरने छोड़ी दीधा. २५ पछी भगवान पुरिमताल-प्रयाग-नगरमां गया अने कायोत्सर्ग करीने ध्यान धरवा लाग्या. ते नगरमा वग्गुर नामे सेठ हतो जे कुबेर मंडारीनी पेठे समृद्धिवाळो हतो, बाणना भाथानी पेठे मग्गण गणने सहायरूप हतो. मग्गण एटले मार्गण-बाण. तोणीर एटले भाथु. बाण माटे भाथु सहारारूप छे तेम आ सेठ मग्गण एटले मागणनांटोळांने संहारारूप. मुनिनी पेठे बन्ने लोकमां एटले आ लोकमां अने परलोक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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