Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 119
________________ आश्चर्य तो ए छे के उपसर्गो करनारा ज थाकी जाय छे पण जेने उपसर्गों द्वारा दुःख देवामां आवे छे ते जगनाथ तो कोई पण स्थाने उपसर्गोने गणता ज नथी-गणकारता ज नथी. १४ । ___ हवे विहार करता स्वामी भुवनना तिलकरूप अने ज्यां-चोकचत्वर अने घरोनी बांधणी बराबर विभागपूर्वक करवामां आवेल छे एवा लोहग्गल-लोहार्गल नगरे पहोंच्या. १५ ते नगरना राजानुं नाम जितशत्रु. एणे पोताना उन्मत्त-अभिमानी तथा शूरवीर शत्रुओरूप हाथीओनो सिंहनी पेठे नाश करी नाख्यो हतो तथा ए राजा जगत आखामां प्रसिद्ध तथा समृद्धिशाळी हतो. १६ ते वखते ए राजानो सीमाडामा रहेता राजा-प्रत्यन्त राजा-साथे विरोध थयो अने ए अंगे छूटा मूकेला चार पुरुषो कोई अपूर्व-नवा -माणसनी शोधमां चारे कोर फरवा लाग्या. १७. ___ हवे ते चार पुरुषोए स्वामीने दीठा अने तेमने पूछवामां आव्यु छतांय कांई जवाब न मळवाथी शत्रुराजाना आ कोई चार पुरुषो छे, एम धारीने ते विमूढ लोकोए तेमने पकड्या. १८. . पकडीने तेओ स्वामीने तत्काळ राजसभामां बेठेला राजानी पासे लाव्या. हवे ए वखते जेनी हकीकत आगळ आवी गई छे ते उत्पल नामे निमित्तशास्त्री त्यां हतो, ते स्वामीने जोईने–१९. एटलो बधो आनन्द पाम्यो जेथी तेना शरीरमां रोमांच थई गयो. उत्पले भक्तिपूर्वक स्वामीने वन्दन करीने राजाने कह्यु के आ कोई चरपुरुष नथी. २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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