Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 117
________________ आ वखते तेने बधीज छूट मळा गइ, सामेथी कोइ बीक पण न रही अने तेमी लाज शरमनो छांटो पण चाली गयो तेथी भांडनी पेठे मधुमथनी प्रतिमाना मुखमा अधिष्ठान-जननेंद्रिय-नाखीने रह्यो. आ वखते हाथमां फूलोने लईने धूपधाणा साथे पूजारी त्यां आवी पहोंच्यो. अने दूरथी ज विस्मय साथे ते प्रकारे ऊभा रहेला गोशालानो आ चेष्टामा लाल जोई विचार कर्यो----- आ देवनी पूजा करता करतां मने घणो समय बीती गयो पण आज सुधी आ प्रमाणे भक्ति करतो कोई माणसने में जोयो नथी. १ तो आ कोई पिशाच हशे अथवा आने कोई ग्रहनो वळगाड वळगेलो हशे अथवा धातुना स्वभावना ऊंधापणाने लीधे शुं आ कोई पण आम उभो हो ? २ पृ० ६८] आम विचार करतो ते पूजारी ज्यारे मन्दिरनी अंदर आयो त्यारे तेणे पास आवीने गोशालाने नग्न जोईने ओळख्यो के आ तो 'श्रमण' छे. ३ ____ पछी पूजारीए विचार कर्यो के जो हुं आने शिक्षा-दंड करीश तो लोको एम समजशे के आ धार्मिक-पूजारी दुष्ट छे. ४ माटे आ हकीकत गाममां जोइने लोकोने जणावू एटले लोको पोते ज जोईने एमने जे उचित लागशे ते करशे. आ अंगे मारे कोई अनर्थ करवानी शी जरूर ? ५ एम विचारीने पूजारीए गाममां जईने लोकोने आ बधी बनेली वात कही संभळावी अने गोशालो जे रीते वासुदेवनी मूर्तिनो आगळ ऊभो हतो ते पण जणाव्यु, ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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