Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 114
________________ १०९ शालिशीर्षक नामना गामनी बहारना बगीचा-उद्यान-मां आवीने प्रतिमा स्वीकारीने ध्यानमा रह्या. पृ० ६६] ते वखते महामास चालतो हतो,त्यां कटपूतना नामनी एक व्यंतरी रहेती हती. ज्यारे महावीर जिनवर त्रिपृष्ठनामना वासुदेवना अवतारमा हता त्यारे विजयवती नामनी कटपूतना, भगवाननी अन्तःपुरिका-अन्तःपुरमा रहेनारी-दासी हती, ते वखते भगवाने तेने बराबर साचवेली नहीं एटले कटतना नामनी दासी भगवान उपर देष राखती हती, अने मरती वखत सुधीमां तेनो ते द्वेष मटी न गयो-मटी न शक्यो तेथी संसारमा भ्रमण करता करता ते मनुष्यनुं जीवन पामी गई अने ते बालतप करती होवाथी व्यंतरी.थयेल. पण पूर्वभवना वैरने लीधे प्रतिमामा रहेला भगवाननुं तेज नहीं सहन करती भगवानने दुख देवा सारु तापसीनुं रूप तेणीए धयु. तेणीए वल्कलो पहेयाँ, माथा उपर जे मोटी लटकती जटा हती तेने सारी रीते हिम जेवा ठंडामा ठंडा पाणीमां पलाळी अने जटामांथी टपकता ते हिमबिंदु जेवा ठंडा पाणी वडे पोतार्नु आय शरीर भीनुं करी पछी ते स्वामीना-भगवानना शरीर उपरमाथा उपर-बेठी अने शरीरना बधां ज अंगोने खूब खूब धुणाववा-हलाववा-लागी. त्यार पछी एनी जटामांथी तथा वारंवार हालता अंगे अंगमांथी टपकतां हिमकण मिश्रित पाणीनां बिंदुओ घणा ज ठंडा पवन साथे भगवानना शरीरने-शरीर उपर बाणना समूहनी जेम वागवा मांड्यां. १ क्षणे क्षणे जटाना जूथमांथी अने पहेरलां वल्कलोमांथी गळती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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