Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 109
________________ १०४ खळ पुरुषोनां वचनोने शुं सांभळ्यां करवानां ? आम बोलता बोलतां रतनावलीए पोतानी धायमाताने पोताना जीवना सोगन दइने कहा के तुं काई अन्यथा न करोश, हमणां तुं मने सहायक था. जेनी आवी स्थिति थई तेने हवे प्रेमी थयेला सुखनुं शुं काम छे ? वळी किंपाकवृक्ष- फळ तो खानारने तेनुं परिणाम छेवटे आपे छे पण प्रियनो संयोग तो शरू थतां थतां ज दुःख आपे छे ए भारे दुःख छे. १ पृ०६३] हताश-जेणे मनुष्योनी आशाने हणी-मारी-नाखेल छे एवा विधाताए प्रियना संगमथी थनारा सुखने खरेखर हाथीना काननी, वीजळीना झबकारानी अने मेघ धनुषनी चपलता भेगी करीने बनावेल छे माटेज मार्नु छ के प्रियना संगमर्नु सुख चपळ छे - अस्थिर-छे टकतुं नथी. २ प्रियना वियोगरूप विषना वेगनी महत्ता-वेगनुं माहात्म्य एटले ए विषना वेगनो प्रभाव पंडित लोको जाणे छे माटे ज तेओ बिलगय-बिलमां गयेला-सर्पनी पेठे विलगय-विलगक-विशेषे करोने लागेला अथवा विविध रीते लागेला प्रेमनो त्याग करे छे. ३ मातारूप धात्री बोली-हे पुत्री ! कया कार्यने माटे सहाय करवा सारु तुं मारी पासे मागणी करे छे ? रतनावली बोली-हे माता ! असह्य विरहनी आगमाथी उठेली बळतराने लीधे परिताप पामेला एवा मारा पोताना-जीवननो नाश करवा माटे अर्थात् मरो जवा माटे. धात्री बोली-हे पुत्री ! तुं उतावळी था मा, हजु सुधी तारा Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154