Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad
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१०३
केवी रीते आवी ? जीवता सर्पराजना माथा उपरथी कोई पण मनुष्य मणिने मेळवी शके नहीं. माटे आ भीलने आ परिस्थितिमा गंच रात सुधी सारी रीते साचवी राखो अर्थात् एने क्यांय जवा देशो नहीं. कोई पण खरी हकीकत जाणी शकाती नथी, दैवनी घटना भारे गंभीर-न कळी शकाय एवी-होय छे. राजानो आवो विचार जाणी ते पुरुषोए पेला भीलने केद कर्यो अने बेडीमां नाख्यो, संशयना हिंचका उपर चडेलो हालकलोल थयेलो राजा पण कशुं नक्की न करी शक्यो, तेनी आंखमां आंसुओ उभराई आव्यां अने भारे शोक साथे ते रोवा लाग्यो, आQ थतां 'कुमार मरण पाम्यो छे' एवी वात त्यां राजाना पडावमां चारे बाजु फेलाई गई, राजाना बधा सामंतो दुःखी थया, आलुं पायदळ झां पडी गयुं, मंत्रीओ उदास अने दुःखी मनवाळा थया, आखं अंतःपुर हाय हाय एम करतुं रोवा लाग्यु. आम लांबा वखत सुधी विलाप करीने भारे शोकने लीधे रतनावलीए जमीन उपर पडतुं मेल्यु-पछाड खाधी अथवा रत्नावलीने मूर्छा आववाथी ते जमीन उपर धडाक करती पड़ी गई, दासीओ तेने घेरी वळी महामुशीबते आश्वासन आपवा लागी. तेथी ते जरातरा स्वस्थ थई. एटलामां रात पडी गई, अंजनगिरि जेवां लागतां अन्धारां चारे कोर उतरी आव्यां. आ रीते मध्यरात थतां रतनावलीए पोतानी धावमाताने बोलावी अने कह्यु के-आटलुं बधुं बन्या पछी पण शुं मारे जीवन टकावी राखq जोईए ? हलका माणसोना अपवादो सहन करवा जोईए ? मारा प्रियपतिना घरमां तेमना स्वजनोनां श्यामल-झांखां पडी गयेलां-मोढा शुं जोयां करवानां ? विना कारणे कोप करता
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