Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad
View full book text
________________
रत्नावलीने जोइने पूर्वभवना दृढ़ प्रेमरूप दोषने लीधे सुरसेन कुमारना चित्तमा अपरम्पार प्रेम उभराई गयो. कुमारे विचार्यु -अहो ! अनुपम रूपसंपत्ति, अहो ! शरीरनुं लावण्य शरीरना कोई पण भागमां खंडित थयेल नथी. 'आ संसार असार छे तो पण एमां आवां कन्यारत्नो देखाय छे' एम विचारी प्रमोद पामेला कुमारनुं पोंखवगेरे विवाहकृत्य करवामां आव्यु, देव अने गुरुओनी विशेषरीते पूजा करवामां आवी, मोटी धूमधाम साथे पाणिग्रहणनो प्रारंभ थयो, राजानेकुवरीना पिताने-संतोष थयो, सामंतोनुं संमान करवामां आव्युं, पोताना स्वजन संबन्धीओने खुशी करवामां आव्या, नगरना लोकोनुं अभिनन्दन करवामां आव्यु, चारे फेरा फरवामां आव्या, आ रीते विवाहनो उत्सव उजवाई गयो अने रत्नावलीनी साथे कोई बीजानी तोले न आवे एवं विषयसुख अनुभवतां केटलाक दिवसो वीती गया. हवे बोजे कोई दिवसे राजाने पूछोने रत्नावलो सहित कुमार पोताना नगर तरफ जवा प्रयाण करवा लाग्यो. रस्तामा प्रवास करतां वच्चे वसंत ऋतु आवी. ए वसंत ऋतु केवी हती ? ए ऋतु आवतां युवान स्त्रीओना मनमां कामदेवनी विशेष असर वधवा लागी. प्रवासी लोकोना हृदयमां कोयलना मधुर कलरवो सांभळतां विशेष त्रास थवा लाग्यो, फूलोमां रहेला मकरन्दनां बिंदुओने पीवा माटे परवश थइने लीन थयेला भमराओ खूब खूब गुंजवा लाग्या, खोलेला सुगन्धी आंबानी उडेली रजरूप धूळने लीधे बधी दिशाओ झांखी देखावा लागी, कुरबकना फूलोना सुगन्धने लीधे चारे कोरथी भमरीओ खेंचाई आववा लागी, आराम सेवननुं सुख. मेळववा-आराम मेळववा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154