Book Title: Mahavira Charit
Author(s): Bechardas Doshi
Publisher: Prakrit Vidya Mandal Ahmedabad

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Page 61
________________ जिनवरने जोया. जोतां ज तेने एम थयु के “ आ तो अमंगल थयु" एटले अमंगल आ नागा ऊभेलाने ज करुं एम विचारी ते लोढानो मोटो भारे घण लइने स्वामीने मारवा दोड्यो. एवामां तेज वखते इन्द्रने विचार थयो के 'स्वामी अत्यारे क्यां विहार करे छे ?' ए जाणवा माटे अवधिज्ञाननो प्रयोग करूं. इन्द्रे अवधिज्ञाननो प्रयोग करतां ज 'पेलो सूथार घण लइने स्वामीने मारवा दोडे छे' ए दृश्य जोयुं अने ए जोतांज आंखमींचे एटली ज वारमा कानमां मणीनां कुंडल हली रह्या छे अवो ते इन्द्र पोते भगवाननी पासे तेज कोडमां आवी पहोंच्यो अने स्वामीने मारवा माटे घण लईने दोडनार ए लुहारना माथा उपर ज [पृ०३५] पोतानी शक्तिथी ते घणने पाड्यो. लुहारना माथामां घण पडतां ज ते मरण पाम्यो, पछी त्रण प्रदक्षिणा करतो इन्द्र नमन करीने जगना गुरु एवा भगवानने कहेवा लाग्यो के, हे स्वामी ! तमे अनुपम कल्याणोना कारणभूत छो, लोकोना लोचनने आनन्द आपनारा छो, छतां तमने जोइने आ पापीओ कई रीते तमारा उपर द्वेष करी रह्या छे ? १ मन वचन अने शरीर द्वारा एटले त्रिकरण द्वारा खरखर माणसोनी रक्षा करवा तमे इच्छो छो छतां तमाग उपर लोकोनी बुद्धि दुष्ट रीते केम चाले छे ? २ ___कोइ एवो होइ शके जे अमृतने विष रूपे समजे अर्थात् एवो कोई मूरख होय के जे अमृतने पण विष समान समजे ? अथवा जेओनां हृदय मूढताथी भरेलां छे एमनी ज आवी बुद्धि होई शके. ३ खरेखर, अमारूं देवपणुं अने तेना महिमानी संपदा विफल छे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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