Book Title: Mahapurana Part 4 Author(s): Pushpadant, P L Vaidya Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 6
________________ आलोचनात्मक मूल्यांकन [13 तीर्थंकरों (अजितनाथ से लेकर मुनिसुव्रत तक) का वर्णन करने के बाद रामकाव्य की रचना करते हैं । रामायण के सृजन क्षणों में पुष्पदन्त का मन आशा और उत्साह से फिर भर उठता है, क्योंकि इसमें बलदेव (राम) और वासुदेव (लक्ष्मण) के गुणों का कीर्तन है। कवि अपनी बुद्धि के विस्तार के अनुसार उनका वर्णन करता है । यद्यपि वह कलिकाल की दुरवस्था से खिन्न है, दुर्जनों के स्वभाव का वह भुक्तभोगी है। फिर भी, भरत के अनुरोध पर सृजन के अपने संकल्प को पूरा करने के लिए वह तैयार है । कवि एक बार फिर अपनी लाचारी की याद दिलाता हुआ कहता है प्राचीन कवियों की पंक्ति में होना तो बहुत दूर की बात, मेरे पास कोई सामग्री नहीं है। अपनश में रामायण के कर्ता कवि स्वयंभू महान् है, जो हजारों लोगों से सम्मानित है। दूसरे कवि हैं चतुर्मुख जिन्होंने रामायण की रचना की है, जिनके चार मुख हैं मेरा तो एक ही मुख है और वह भी खंडित, वह भी दुष्टता से भरा हुमा : 'म एक्कु तं पि विहिणा पेसुण्ण खंडिय मंडित' ।' हो सकता है मेरा कहा विद्वानों को धम को अच्छा। किए भी अपनेपन की क्षमा मांगते हुए, काव्य रचना प्रारम्भ करता हूँ। मेरा विश्वास है कि रामकथा के कुछ प्रसंग विचक्षणों को आकर्षित किए बिना नहीं रह सकते । ये हैं- राम का यश, लक्ष्मण का पुरुषार्थ और सीता का सतीत्व ।' कवि कहता है कि जिस तरह जलबिंदु कमलपत्र पर मोली की शोभा को धारण करता है, उसी तरह उत्तम आश्रय पाकर काव्य शोभा पाता है 'जलबिंदु व पोमपत्ति थिय मुसाहसवणु समुष्वह इ आसयगुणेण कण्णु वि सह । 69/2 जिन घटना सूत्रों की बुनावट में कवि राम के यश, लक्ष्मण के पुरुषार्थ और सीता के सतीत्व के रंगों को उभारता है, वे हैं सीता का अपहरण, हनुमान् का गुणविस्तार, कपटी सुग्रीव का मरण, तारापति (सुग्रीव) का उद्धार, लवण समुद्र का संतरण और निशाचर कुल का नाश । कवि सीता के अपहरण को केन्द्र में रखकर ही उक्त सूत्रों को बुनता है। पुष्पदन्त के रामायण-सृजन का दूसरा महत्त्वपूर्ण बिन्दु भाव और नाना रसभावों से युक्त राम-रावण युद्ध । -भरत का भक्ति 69वीं संधि दूसरी जैन रामायणों की तरह, पुष्पदन्त भी अपनी रामायण राजा श्रेणिक और गणधर गौतम के संवाद से प्रारम्भ करते हैं, यद्यपि, उनकी रामकथा गुणभद्राचार्य की परंपरा पर आधारित है, जो विमलसूरि के 'पउमचरिय' को रामकथा से भिन्न है। इससे स्पष्ट है कि समान स्रोत होने पर भी रामकथा के कवि विभिन्न घटनाओं प्रभावों को ग्रहण करते रहे हैं, या उनकी नई व्याक्या करते रहे हैं। उनका संबंध श्रेणिक गौतम संवाद से जोड़ना एक पौराणिक रूढ़ि मात्र है । चार्म की रामकथा में राम का सीता से विवाह जनक के पशुयश से जुड़ा हुआ है। सगर का आख्यान भी यज्ञसंस्कृति से जुड़ा हुआ है, जो उदाहरण के रूप में प्रस्तुत है । काव्य के रंगमंच पर जो पात्र आते हैं या जो घटनाएँ प्रस्तुत की जाती हैं, वे जैन दार्शनिक विश्वास के अनुसार पूर्वजन्म के नेपथ्य सेPage Navigation
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