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(७) मतलब, सांसारिक प्रेम का परलोक में कितना कटुफल मिलता है ? देवशर्मा ब्राह्मण अपनी पत्नी के प्रति अति स्नेह में मरकर पत्नी के सिर के बालों में जू बना । ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती मरकर सातवीं नरक में गया । वहाँ भी अपनी पटरानी को 'हे कुरुमती ! हे कुरुमती!' पुकारकर याद करता है। प्रेम के पीछे जीव पापमय विचार-वाणी-व्यवहार से मानव-भव से भ्रष्ट होकर चौरासी लाख योनिमय संसार में भटकते हैं । सांसारिक प्रेम आत्मा की दुर्दशा है।
स्नेही के पीछे त्याग करने में बद्धि :
इसलिए 'क्या प्रेमी के लिए त्याग करना ही नहीं ?' इस प्रश्न का उत्तर यह कि 'त्याग स्नेह के लिए नहीं बल्कि सिर पर आये कर्तव्य-भार का वहन करने के लिए एक धर्मात्मा के तौर पर औचित्य हेतु, और उसको धर्म में जोड़ने के लिए करना चाहिए। अन्यथा सांसारिक स्नेह अन्तर में धारण करने योग्य नहीं है। कहते हो न?
समकित-द्रष्टि जीवड़ो, करे कुटुंब-प्रतिपाल ___अन्तर से न्यारो रहे, जिम धाव खेलावत बाल क्या धाय माँ राजपत्र को नहीं पालती? फिर भी उस पर अपने पत्र जैसा स्नेह नहीं होता । केवल आजीविका के हिसाब से नौकरी करती है। स्वावलंबी बनने पर छोड़ने में जरा भी झिझक नहीं, हिचक नहीं । ऐसे सम्यक-द्रष्टि जीव बनना चाहते हो? तो कुटुंब का भरण-पोषण करते हुए भी अन्तर में स्नेह नहीं रखना । स्नेह वीतराग से, त्यागी गुरु से, संघ साधार्मिक से करो । शक्ति आने पर स्नेह के बिना पाले हुए उस परिवार को छोड़ जाने में कोई हिचक नहीं होंगी। ऐसे स्नेह-रहित पालन में कुटुंब को आत्मकल्याण में जोड़ना ही प्रधान उद्देश्य बन जाएगा।
मानभट की पत्नी जीवित है :
पत्नी को निश्चेष्ट देखकर मानभट का चित्त व्याकुल हो रहा था, लेकिन आशा तो मरी नहीं थी। वह पानी छाँटता है, हवा करता है, और शरीर को दबाता है,- ये क्रियाएँ जारी हैं। इस बीच थोड़ी देर में पत्नी का अंग फड़का। वह मर नहीं गयी थी। साँस सँध गयी थी,
और अंग शिथिल पड गया था। लेकिन अभी भीतर प्राण विद्यमान थे। ठंडक तथा हवा मिलने से चेतना धड़कने लगी, साँस चलने लगी, होश आ गया। यह देख मानभट के जी में जी आया । लगा 'अहा ! जीवित है, यह अच्छा हुआ वरना मैं जरा सा देर से आता तो आज काम तमाम हो ही गया था। पत्नी भी मर जाती और उसके बाद मैं भी मर जाता ।
ऐं ! क्षण भर की देर में काम तमाम ? :
हाँ, बाज़ार में भाव में तेजी आते ही सौदा पटा दिया तो वाह वाह ! और क्षणभर सोचता रहा और इतने में भाव गिर गये तो खेल खतम ! ऐसा होता है न ? घर पर जरा सोच-विचार में रह कर स्टेशन पर क्षणभर देर से पहुंचे और गाडी चल दी तो रह जाना पडे
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