Book Title: Kuvalayamala Part 2
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 224
________________ वे ही थे, जो लोभदेव का जीव सागरदत्त व्यापारी बना था, वे दीक्षित होकर सागरदत्त मुनि बने थे। कुवलयकुमार ने सागरदत्त मुनि से अपने अपहरण के बारे में पूछा । तब धर्मनन्दन आचार्य महाराज पुरंदरदत्त राजा व वासवमंत्री को उपदेश दे रहे हैं, जिसमें क्रोध-मान-माया-लोभ का वृत्तान्त कहते हैं। कुछ वक्त बीतने के बाद कुवलयकुमार-कुवलयमाला दीक्षा लेते हैं। बाद में पृथ्वीसार भी दीक्षा लेता है । वह कालधर्म पाकर फिर से देव बनता है। सागरदत्त मुनि व सिंह भी देव बनता है। इस प्रकार पांचों पुनः देवलोक में देव बनकर अपना समय सुख में बिताते हैं। उसके बाद चौबीसवें परमात्मा श्री महावीर स्वामी के काल में कुवलयचन्द्र देव का जीव काकंदी नगरी में कंचनरथ राजा का पुत्र मणिरथकुमार बनता है। राजा की विनंति से महावीर प्रभु उसके एक पूर्वभव की बात कहते हैं, जो सुनकर वैराग्यवासित बना हुआ मणिरथकुमार प्रभु के पास दीक्षा लेता है। मोहदत्त देव का जीव रणगजेन्द्र का पुत्र कामगजेन्द्र बनता है। स्वयं को हुए अनुभव की सत्यता प्रभु महावीर के मुख से सुनकर वह दीक्षा लेता लोभदेव का जीव देवलोक में से च्यवन पाकर ऋषभपुर नगर के राजा चन्द्रगुप्त का पुत्र वज्रगुप्त बनता है। प्राभातिक के शब्द से प्रतिबोध पाकर वह महावीर प्रभु के पास दीक्षा लेता है। - चंडसोम का जीव देवलोक से च्युत होकर यज्ञदेव नामक ब्राह्मण का स्वयंभू देव नामक पुत्र बनता है व गरुड पक्षी के वृत्तान्त से बोध पाकर महावीर प्रभु के पास दीक्षा लेता है। ___ मायादित्य देव का जीव राजगृही नगरी में श्रेणिक राजा का पुत्र महारथ बनता है। स्वयं के स्वप्न का स्पष्टीकरण प्रभु महावीर के मुख से सुनकर वैराग्य से दीक्षा लेता है। अन्त में ये पांचों सुन्दर साधना करके अंतकृत् केवली होकर मोक्ष में जाते हैं। opooOOOOOOOOOOOO 000000000000dododor DOOOOOOOOOK 00000000000000000 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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