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कहीं मानभट नहीं दिखाई दिया। मन को लगा कि,
'यहाँ तक वे दूर भी मेरे आगे आगे चल रहे थे, जो अब इससे आगे, या यहाँ इधर उधर नहीं दिखाई पडते, तो हाय ! अवश्य उन्होंने कुएँ में छलांग लगायी है।
पत्नी का विलाप और....
'हाय ! वे मेरी प्रसन्नता न मिलने से निराश होकर दूसरी पत्नी करने का भी विचार न कर के यहाँ आकर कुएँ में गिर पडे? मुझ जैसी अभागिन पर उनका इतना अंधा प्रेम? नहीं तो, उन्हें-पुरुष को क्या मुश्किल थी? एक स्त्री वक्र बनकर माने ही नहीं तो दूसरी ब्याहते क्या देर लगती है ? लेकिन ऐसा न कर एक मेरे प्रति प्रेम के कारण कुएँ में गिर पडे! तो अब मेरी क्या हालत? दुनिया में स्त्रियों को परिवार में अपमानादि मिलते हों, या दौर्भाग्य के कलंक के कारण औरों की ओर से दुर्भावना पाती हों, और उसके दुःख में जलती हो ऐसी स्थिति में भी उसे एक मात्र सहारा पति का ही होता है। लेकिन यहाँ मेरा तो वह सहारा भी गया । तो अब मेरे जीवन का क्या प्रयोजन?'
___ मन में ऐसा विचार आते ही पति तो अभी सोच ही रहा है कि देखू यह क्या करती है. उतने में वह कएँ में कद पड़ी। देखो विषमता । पति एक शब्द गलत बोला है ऐसा इसे लगने पर बाद में उस बेचारे ने माफी भी मांगी, स्पष्टीकरण भी किया, और चरणों में सिर रख कर बहुत मनाया भी, फिर भी इस ने उसकी कीमत नहीं की, सो अब इतनी बडी कीमत मानती है कि 'पुरुष जैसा पुरुष दूसरी स्त्रियों से ब्याहने की क्षमता वाला होते हुए भी ऐसा न कर एक ही स्त्री पर अनन्य प्रेम में प्राण त्याग देता है, यह उसका कितना भारी बड़प्पन है ?' अब पति का बडप्पन देखती है ? कब उसका मूल्य-बडप्पन माना ? जब उसके खत्म हो जाने का मालूम हुआ तब । लेकिन अब मूल्य आँकने से क्या ? कहते हैं न कि जीते जी नहीं पहचाना, और मरने के बाद रोना धोना, क्या फायदा? उलटे, वह तो सचमुच नहीं मरा, बरबाद नहीं हुआ, लेकिन यह तो सचमुच कुएँ में गिर कर मर गयी। समझदारी थोडी पहले आयी होती तो? पति के मनाने से मान जाती तो? तो क्या? कहिये कि न पति को खोना पडता, न अपने आप को खोने की नौबत आती।
जीवन कला:- अवसर पर समझ लेना :' बस जीवन जीने की कला यह है कि वस्तु का तन्त बहुत नहीं खींचना । अवसर पर समझ जाना चाहिए । कदाचित् क्षण भर ऐसा लगे कि 'हमें हारना पिछड़ना पडा' तो कोई चिंता नही । बड़े अनर्थ से तो बच जाएँ
नियति पर छोड़ दें कि इसी में कुछ शुभ संकेत होगा, भविष्य में इस से भला होने वाला होगा।'
हमारे हठाग्रह छोड देने से प्रत्यक्ष में अगले की सद्भावना मिलती है, और हमारे हृदय के कोमल हलके होने का भी लाभ होता है।
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