Book Title: Kuvalayamala Part 2
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 177
________________ नानाजी पर चढ़ाई की। खूब लड़ा, परन्तु जीत नहीं मिल रही थी । तब पतित कूलवालक मुनि के प्रपंच द्वारा चेड़ा राजा की नगरी विशाला में स्थित मुनिसुव्रतस्वामी भगवान का स्तूप नष्ट कराया। फिर जीत तो हासिल हुई, परन्तु मोहवश किये हुए ये सब पाप और फिर विशाला का नाश, क्या इसमें कार्यसिद्धि हुई ? नहीं, अन्त में मरकर छठ्ठी नरक में उत्पन्न हुआ। इस प्रकार मोहवश सर्वविनाश का सर्जन होता है, सद्गति के द्वार बन्द हो जाते हैं। आचार्य महाराज कहते हैं कि, - मोह से मित्रनाश, सद्गति का नाश तथा सर्वनाश होता है।' आज कई लोग अच्छे मित्रों व स्नेहीजनों के साथ ऐसा खेल खेलते हैं व अपने अच्छे मित्र व स्नेहीजन को खो बैठते हैं। मोह के अनेक प्रकार हैं, जैसे कि अज्ञानता, अविवेक, कामवासना की परवशता, खान-पान की लंपटता, अहंत्व का अतिरेक, ईर्ष्या... आदि । इनमें से एक के भी वश पड़े, तो ऐसे आचरण होते हैं, जिनसे अच्छे मित्र को खो बैठते हैं। कोणिक महान श्रावक चेडा राजा जैसे अपने नाना को गंवा बैठा । वर्तमान काल में आठवें एडवर्ड ने लेड़ी सीम्पसन के मोह में ब्रिटिश सल्तनत का आधिपत्य गंवाया व कई अच्छे-अच्छे स्नेही हितैषियों को गंवाया । राजा चंडप्रद्योत के ज्येष्ठ पुत्र अवंतीवर्धन ने छोटे भाई राष्ट्रवर्धन की पत्नी के मोह से छोटे भाई का वध किया और भाई की पत्नी ने तो भागकर चारित्र ले लिया । अवंतीवर्धन इस प्रकार भाई व भाभी दोनों खो बैठा I राजा सोदास खान-पान के लोभ में मोहमूढ़ बनकर जिंदे बालकों का मांस खाने लगा। मंत्रियों को पता चलने पर राजा को निकाल दिया व उसके पुत्र नघुष को राजा बनाया । इस प्रकार सोदास ने मोह में सर्वस्व गंवाया व सर्वनाश को निमंत्रण दिया । यह तो हुई इस लोक की द्रष्टि से बात ! परन्तु परलोक की द्रष्टि से भी मोह से सद्गति बन्द हो जाती है। मोहमूढ़ विषयलंपट सत्यकी नरक में गया। चक्रवर्ती का गाढ़ विषयासक्त स्त्रीरत्न मोह के प्रताप से छठ्ठी नरक में जाता है। चक्रवर्ती की पट्टरानी को कहाँ महाआरंभ, महा परिग्रह संचय, झूठ, चोरी, दुराचार आदि पाप करने पड़ते हैं ? परन्तु तीव्र विषयासक्ति उसे नरक में ले जाती है। मोह की कैसी विडंबना ? मोह के कैसे दुःखद परिणाम ? धर्मनंदन आचार्य महाराज कहते हैं कि मोह सद्गति को रोकता है और सर्वनाश को न्यौता देता है। मोहमूढ़ता ऐसी चीज है कि जिसमें गम्यागम्य, हिताहित व भक्ष्याभक्ष्य का विबेक नहीं रहता । १) मोह गम्यागम्य का विवेक भूलाता है : विश्वामित्र ऋषि मेनका में आसक्त हुए थे। आज की कोलेज के युवक-युवती मोहवश अनाचार की राह पर जाने लगे हैं, कई मोह-मूढ़ श्रीमंत पैसों के जोर पर गम्यागम्य का विवेक भूलकर गुप्त पापों का सेवन करते हैं । १७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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