Book Title: Kuvalayamala Part 2
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 195
________________ कर्म की विचित्रता बालिका वनदत्ता कहाँ ? जंगल में बालिका भूखी नहीं मर जायेगी ? जंगली प्राणियों से मारी नहीं जायेगी ? नहीं, शुभोदय जागृत है, इसलिये ऐसा कैसे हो सकता है ? अचानक वहाँ जयवर्मा राजा का दूत आया । इस सुन्दर, नवजात बालिका को देखकर उठा लिया व अपनी पत्नी को देकर कहा - 'ले, यह वनदेवी की भेंट ! अब संतान प्राप्ति के लिये यहाँ-वहाँ मत भटकना | गर्भ धारण करने की पीड़ा सहे बिना तुझे तो तैयार माल मिल गया।' बालिका को देकर दोनों पाटलिपुत्र आये और बालिका का नाम रखा 'वनदत्ता' । बाघनी के मुंह में से शुभोदय ने ही बचाया न ? बालिका का शुभोदय कैसा काम आया ? सामान्य तौर पर माता-पिता बच्चों के संरक्षक कहे जाते हैं, परन्तु यहाँ तो देखिये ! माता-पिता तो कहीं दूर हैं । अरे ! माता तो पास में ही थी, किन्तु कितना संरक्षण दे सकी ? बाघनी के मुंह तक पहुंचने के बाद भी संरक्षण करनेवाला कौन ? स्वयं के शुभ कर्म का उदय । ऐसी दीये जैसी स्पष्ट बात होने पर भी जीव को शुभ का विश्वास न हो, शुभ के संचय की परवाह न हो, और अशुभ के ढेर जमा कराये ऐसे वाणी, वर्तन व विचार में इसे रहना है, यह मूढ़ता है। संसार के सुखसन्मान की लालसा यह मूढ़ता कराती है। बालिका का तो रक्षण हुआ, परन्तु बालक का क्या हुआ ? उसका शुभोदय किस प्रकार काम करता है, यह देखें । बाघनी उसे लेकर आगे जा रही है, इतने में पाटलिपुत्र के राजा जयवर्मा का पुत्र शबरसिंह, जो शिकार के लिये निकला था, उसने दूर से बाघनी को जाते हुए देखा। उसने तुरंत उसकी ओर निशाना ताककर बन्दूक में से गोली छोड़ी । बाघनी का ध्यान नहीं था, वह तो सहज रुप से चली जा रही थी । वह गोली लगते ही घायल होकर भूमि पर गिर पड़ी। राजपुत्र को बालक की प्राप्ति : ... राजपुत्र ने पास में जाकर देखा, तो बाघनी के मुंह में से छूटी हुई गठरी में एक सुन्दर बालक दिखा। देखते ही वह तो खुश हो गया। उसने बालक को उठाया व घर लाकर पत्नी को सोंपते हुए कहा - 'ले प्रिया ! तू पुत्र चाहती थी न ? मैं तेरे लिये पुत्र लेकर आया हूं।' पत्नी तो अत्यन्त आनंदित हो गयी। बाहर यही बताया गया कि 'स्त्री को गुप्त गर्भ था और पुत्र का जन्म हुआ है।' पुत्र का जन्मोत्सव धाम- धूमपूर्वक मनाया। उसका नाम 'व्याघ्रदत्त' रखा । Jain Education International कर्म की विचित्रता तो देखिये ! राजकुमार को बालक कब मिला ? बालक जिंदा १९० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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