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नहीं कर सकते?
अति सुकोमल शालिभद्र, धन्नाजी, मेधकुमार आदि तप-संयम में किस प्रकार इतने आगे बढे होंगे ! वैराग्य से संसार छोडा जा सकता है, सामान्य तप-संयम की आराधना की जा सकती है, परन्तु इस प्रकार खून व मांस को सुखा डाले, ऐसी घोर तप व संयम की साधना किसके आधार पर की जाती हे ? उन्होंने ऐसी उत्कृष्ट तप-संयम की साधना कैसे की होगी? हाँ तत्व को समझे, व प्रभु महावीर के आलंबन से 'मेरे प्रभु ने कैसी जबरदस्त साधना की है, तो मुझे भी इसी मार्ग पर चलना चाहिये । अति सुकोमल, इन्द्रों के भी पूज्य... ऐसे प्रभु ने ऐसी घोर तपश्चर्या की, घोर परिषह-उपसर्ग सहन किये, तो मुझे भला दूसरा विचार करने की क्या आवश्यकता है'... ऐसा कोई आलंबन नजर के समक्ष रखा होगा, तभी तो शालिभद्र आदि ऐसा सत्व प्रगट कर सके होंगे।
प्रभु मिलने पर हृदय भर आये : ऐसे स्नेही कहाँ मिलेंगे ?
हमारे पास हृदय हो, तो वह हृदय बार-बार भर आता है कि 'अहो ! घोर पापों से भरी इस पृथ्वी पर मुझे कैसे अनुपम प्रभु मिले! आज दुनिया में देखें, तो कितने मानवों को ऐसे महा स्नेही, महातारक प्रभु मिले हैं ? आज की दुनिया में ४०० करोड मानवों को ये प्रभु नहीं मिले । मुझे ये प्रभु मिल गये?' ऐसा विचार करने पर भी हृदय भर आता है। इसी तरह गणधर गौतम स्वामीजी आदि... आचार्य भद्रबाहु स्वामी, हरिभद्र सूरि आदि... यावत् वर्तमान गुरु महाराज आदि... कैसे महा स्नेही, महा कल्याणमित्र, महा उपकारी मुझे मिले हैं । इस विचार से हृदय गद्गद् हो जाता है। इन्हें वन्दन आदि करते वक्त दिल भावविभोर बन जाता है। हृदय हो, तो तीर्थंकर परमात्मा आदि का आलंबन लेते हुए हृदय भर
आता है, आराधना में उत्साह जगता है। सुलसा का हृदय इसी तरह भर आता था। अंबड श्रावक ने उसे प्रभु महावीर का संदेश कहते हुए उसमें अद्भुत संवेदन देखा और चकित रह गया 'वाह ! प्रभु के प्रति कैसा राग ! कैसा सम्यग्दर्शन !' कहिये, बार-बार हृदय भर आने के लिये हृदय है?
प्रश्न :- सब कुछ समझ में आता है, परन्तु दुनिया के कार्यों में दूसरे का आलंबन लेकर आगे बढा जाता है, तो इसी तरह यहाँ क्यों ऐसा आलंबन नहीं लिया जाता?
उत्तर :- पहले यह तो बताईये कि प्रभु को बार-बार याद करके इस प्रकार हृदय भर आता है ? 'मुझ जैसे नालायक, नराधम, लाखों दोषों से भरे हुए इन्सान को ये प्रभु मिले! ये नाथ मिले ! कितनी ऊँची व अति दुर्लभ उपलब्धि !' ऐसा विचार आता है ? इस विचार से हृदय भर आता है ? यदि ऐसा होता है, तो सब शक्ति बाहर निकालकर ऐसे प्रभु के आलंबन से उल्लास-पूर्वक सुन्दर साधनायें होने लगती हैं।
प्रश्न :- इस प्रकार प्रभु पर हृदय कैसे भर आता है ? उत्तर :- तुलना करने से ! यह देखो कि औरों को जो रागादि से मलिन देव-देवी
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