Book Title: Kuvalayamala Part 2
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 208
________________ (चेतावनी देनेवाले के तेज से स्तब्ध हो गया :-- वहाँ पर काउस्सग्ग-मुद्रा में खडे हुए एक मुनि को देखा। मुनि का मुख तप के तेज से जगमगा रहा था । मोहदत्त सोचने लगा कि 'अरे! यहाँ तो इनके सिवाय और कोई दिखता नहीं, इससे लगता है कि बोलनेवाले ये महात्मा ही होने चाहिये ।' क्या तलवार दिखाकर धमकी दूँ कि आप क्यों ऐसे अयोग्य शब्द बोल रहे हैं ? नहीं। वह तो मुनि के तप के ज्वलंत तेज को देखकर भौंचक्का रह गया, उसका गुस्सा ठंडा पड गया । वह सोचने लगा 'अरे! ये तो पूजनीय वीतराग जैसे दिखते हैं। इन्हें न कोई राग है, न कोई द्वेष । अतः ये असत्य क्यों बोलेंगे ? महर्षि तो दिव्यज्ञान के धनी लगते हैं 1 इनका वचन असत्य मानने का कोई कारण नहीं । चलो, पूछें तो सही कि उनके इन शब्दों के पीछे क्या रहस्य है ?' उपदेश की बात तो बाद में, परन्तु मुनियों के तप व संयम का असर पडे बिना नहीं रहता । नहीं तो भयंकर अपकृत्य करनेवाला मोहदत्त मुनि को देखकर एकदम ढीला कैसे पड़ता ? उसे 'मूढ' व 'निर्लज्ज' जैसे शब्दों से संबोधित करनेवाले मुनि के प्रति उसे आकर्षण कैसे होता ? परन्तु यह प्रभाव पड़ने के पीछे कारण था... मुनि के तप का तेज, संयम की प्रभा, उपशम का लावण्य ! इसीसे उसका गुस्सा शान्त हो गया। मुनिराज के चरणों में नमस्कार करके पूछता है 'पिता को मारकर, माता के सामने, बहन के साथ अपकृत्य करने के लिये तू तैयार हुआ है... ऐसा आप तीन बार बोले । इसका रहस्य क्या है ? कौन पिता, कौन माता व कौन बहन ?' इतने में तो सुवर्णदेवा व वनदत्ता भी वहाँ आ गये । मुनि द्वारा स्पष्टीकरण महर्षि कहने लगे, "सुनो भाई ! कोशला नगरी में नन्दन नामक सेठ, उसकी पुत्री सुवर्णदेवा । पति परदेश से नहीं लौटने पर वासना से विह्वल बनी सुवर्णदेवा ने राजा के पुत्र तोशल के साथ दुराचार का सेवन किया। गर्भ रहा। पिता को सदमा पहुँचा ! राजा से फरियाद की। राजा ने छानबीन करवायी तो रात में सेठ के घर से तोशल रंगे हाथों पकडा गया। राजा ने मंत्री को उसके वध की आज्ञा दी, परन्तु मंत्री ने दया करके उसे गुप्त रूप से परदेश रवाना किया। वह तोशल यहाँ आकर यहाँ के राजा की सेवा में रहा । " सुवर्णदेवा का सब तिरस्कार करने लगे । वह घर से भागी । उसने जंगल में जुडवा बच्चों को जन्म दिया। दोनों के हाथों में अंगूठियाँ पहनायीं, दोनों को कपडे के दो छोरों पर बांधकर नहाने गयी । एक भूखी बाघन वहाँ आयी । वह बच्चों की बांधी हुई कपड़ों की गठरी उठाकर चली । रास्ते में गठरी की एक गांठ छूट जाने से बालिका नीचे गिर गयी । बाघन तो मालुम न पडने से चली गयी। बालिका को वहाँ से गुजरते हुए जयवर्मा राजा के दूत ने उठाया। घर लाकर अपनी पुत्री की तरह पाल-पोसकर बडा किया ! वह है - यह २०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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