Book Title: Kuvalayamala Part 2
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 198
________________ व्यक्ति संभालनेवाला मिले । पुण्य में तो इतना ही है कि मनपसंद व्यक्ति खिलानेवाला मिले या मनपसंद व्यक्ति संभालनेवाला मिले। उदाहरण के लिये :- इन्सान कपास बाजार व चांदी बाजार में व्यापार करता है और चांदी बाजार में ही कमाता है। इसका कारण क्या ? अकेला पुण्योदय नहीं, क्योंकि पुण्य में यह लिखा हुआ नहीं होता कि पैसे चांदी के बाजार से ही कमाये जायेंगे। पुण्य तो इतना ही है कि पैसे मिलेंगे व इससे आगे बढ़ें, तो यही कि कमाने के बाद बुद्धि बराबर चले । परन्तु चांदी बाजार के ही सौदे में बुद्धि बराबर चली व उसी बाजार में कमाई हुई, इसमें कारण क्या है? अच्छा होता है पुण्योदय से, परन्तु किसी विशेष प्रकार से अच्छा होता है, भवितव्यता से। यहाँ पर भवितव्यता नामक कारण सामने आता है। कमाई के योग्य बुद्धि व कमाई तो पुण्य के उदय से हुई, परन्तु कपास बाजार में न होकर चांदी बाजार में ही हुई, इसका कारण है - भवितव्यता ! सुवर्णदेवी को वही बालिका लालन-पालन करने हेतु मिली व बालिका को सुवर्णदेवी ही संभालनेवाली मिली, इसका कारण है - भवितव्यता ! 'भवितव्यता' अर्थात् नियति, भावी भाव ! कोई निश्चित संयोग या घटना घटती है नियति के कारण, भावी भाव के कारण, वैसी भवितव्यता के कारण ! सुख में समय का भान नहीं : सुवर्णदेवी व बालिका वनदत्ता को परस्पर बहुत प्रेम है। समय गुजरने में कहाँ देर लगती है ? इसमें भी प्रेम का वातावरण हो व सुख-सुविधा अच्छी मिली हो, तब तो महीने भी दिन जैसे लगते हैं। वनदत्ता उद्यान में : वनदत्ता बालिका क्रमशः कुमारी व युवती बनी। उसकी आंखें दूसरों को कामवासना से विह्वल कर दें, ऐसी मादक हैं। एक दिन की बात है। वसंत ऋतु का आगमन होने से नगर के बाहर के उद्यान में मदनोत्सव का आयोजन किया गया था। कई लोग वहाँ घूमने के लिये आये थे। सुवर्णदेवी के साथ वनदत्ता भी उद्यान में पहुंची। श्री धर्मनंदन आचार्य महाराज पुरंदरदत्त राजा को संसार में मोह कैसे अनर्थ मचाता है, यह बात करते हुए प्रस्तुत प्रसंग कह रहे हैं और यह बात कुवलयानंद राजकुमार आकाशगामी घोड़े से जंगल में किस प्रकार रखा गया, इसके स्पष्टीकरण में उसे महायोगी महर्षि के द्वारा जंगल में कही जा रही है। व्याघ्रदत्त (मोहदत्त ) उद्यान में : आचार्य महाराज कहते हैं - सुवर्णदेवी की बालिका तो जयवर्मा राजा के दूत के हाथ में आयी । वनदत्ता नामक वह बालिका बड़ी हुई, वही अब युवती के रुप में उद्यान में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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