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होगा, इसलिये उससे बचेगा, परन्तु परस्त्री-दर्शन में ऐसा कोई घोर पाप माना ही नहीं, फिर कैसे बचे?
स्पसेन का घोर पाप :
परस्त्री-दर्शन में घोर पाप न होता, तो रुपसेन के सुनंदा के एक भव में सात भव क्यों होते ? उसने सिर्फ क्या किया था? रोज सुनंदा को देखा करता था। एक दिन सुनंदा से मिलने जा रहा था। रास्ते में ही कोई दीवार उस पर गिर पडी, वह मर गया । मरकर उसके ही गर्भ में जन्म लिया, वह दूसरा भव । बाद में क्रमशः सांप, कौआ, हंस, हिरण व हाथी बना। सुनंदा का तो अभी तक वही भव है, उसके सात भव हो गये। जंगल का हाथी बनने पर भी सुनंदा को देखने में आसक्त । क्यों ? परस्त्री-दर्शन को उसने घोर पाप माना ही नहीं था, इसीलिये बड़े मजे से परस्त्रीदर्शन में आसक्त था। वे ही संस्कार यहाँ पशु के भव में भी आये । इसीलिये मनुष्य-स्त्री को देखते ही नाचने लगता है, 'वाह ! कितना सुन्दर चेहरा !'
अवधिज्ञानी मुनि के मुख से रुपसेन की करुण कथा सुनकर सुनंदा ने वैराग्यवासित होकर दीक्षा ले ली। संयम व तप के प्रभाव से वह भी अवधिज्ञानी बन गयी। वह हाथी के सामने खड़ी है और हाथी से कहती है,
'बुज्झ बुज्झ स्पसेण, बुज्झ बुज्झ स्पसेण ! अभी तक मोह ? सांप बना, कौआ बना, हंस बना, हिरण बना ! सब जगह मुझे देख-देखकर वाह ! कैसा सुन्दर मुख!' ऐसा ही करते रहा । इसीसे हर जन्म में मौत की सजा मिली, फिर भी फिर से वही हाल ! मूर्ख ! सुन्दर चेहरा देखता है, मौत को क्यों नहीं देखता?'
इस प्रकार परस्त्रीदर्शन के पाप से हाथी को वापिस मोड़ा, तब उसका उत्थान हआ। घोर पाप समझकर वह उसके साथ ही अन्य पापों का भी त्याग करके व्रतधारी बना, तपस्वी बना व अन्त में आठवें देवलोक में देव बना।
सिनेमा देखनेवाले क्या कमायेंगे?
आचार-विरुद्ध पापों से बचना है ? तो उन पापों को घोर पाप मानिये । (मायादित्य का क्या हुआ?
मायादित्य माया को पाप ही नहीं मानता, फिर वह माया करने में भला क्या बाकी रखेगा? मार खाने पर भी कुत्ते की दुम सीधी नहीं होती, इसी प्रकार उसकी वक्रता नहीं जाती । स्थाणु को बनावटी बातों से वश में करके उसके साथ आगे चला। नर्मदा नदी पार करके आगे चलते हुए दोनों रास्ता भूल गये व एक बडे जंगल में उतर पडे। रास्ता भूलने के बाद ऐसे जंगल में जल्दी रास्ता मिलेगा?
जिन-मार्ग भूला हुआ वापिस कब मार्ग पाता है ? जिनमार्ग मिलने पर भी प्रमाद से उसकी आराधना न करनेवाला जिसप्रकार लाखों
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