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सोने का मकट सर पर चढता है :
सोने व हंस जैसे बने रहना हो, तो भी सहन तो करना ही पडेगा । राजा सर पर सोने का मुकुट चढ़ाते हैं, पीतल का नहीं। भला क्यों ? क्योंकि सोना तेजस्वी है, अग्नि का ताप सहन करके भी तेज नहीं छोड़ता। ऐसा सोने का मुकुट देवों के व देवाधिदेव के मस्तक पर भी चढता है। आर्य मानव-जीवन पाने की विशेषता यह है कि यह जीवन जीते-जीते सोने जैसा सज्जनता का तेज कष्ट में भी अखंडित रखें और हंस जैसी उदारता, उज्ज्वलता, उत्तमता सदा बनाये रखें । सबके प्रति न हो सके, तो कम से कम स्नेही-स्वजनों के प्रति तो इतना कर सकेंगे।
मायादित्य संकट में :- आचार्य महाराज ने राजा से कहा - 'देख, राजन् ! मायादित्य रत्न लेकर आनंद में आगे तो चला, परन्तु कुछ दूर जाने पर देखा, तो एक भीलों का टोला 'मारो, मारो, पकड़ो, पकड़ो' कहते हुए उसकी ही ओर आ रहा था। उसके तो होश-हवास उड़ गये। अन्दर घबराहट होने लगी कि अब रत्न तो क्या. प्राण भी गये ही समझो।' वह दूसरी ओर दौड़ने लगा। आप कहेंगे कि 'प्यास लगी थी, फिर कैसे दौड़ पाया?' तो सुनिये !
जहाँ प्राण बचाने की बात आती है, वहाँ भूख-प्यास, थकावट-सुकोमलता कुछ नहीं नजर आता। .. कलकत्ता में पहली बार पाकिस्तानियों का हमला होने पर कई सुकोमल सेठानियाँ चार-पांच मंजिलवाली इमारत की छत से दूसरी ऊंची इमारत में कूद पड़ी। दो इमारतों के बीच ३-४ फूट जितनी खाली जगह थी, जो गहरी खाई जैसी थीं, उसका भी भय नहीं रखा कि 'इसमें गिर गये, तो क्या होगा?' क्योंकि सामने गुंडों द्वारा निर्दयतापूर्वक छुरी से काटे जाने का भय दिख रहा था। उससे बचने के लिये सुकोमलता भुलाकर कूदने का साहस किया।
आत्मार्थी जीव आत्मा को बचाने के लिए यही सोचता है कि 'भूख-प्यास, थकावट-सुकोमलता सब कुछ भुलाकर किसी भी तरह मेरा आत्म-हित साध लुं ।' मासक्षमण, डेढ मास, दो मास के उपवास करनेवाले के लिए आपको लगता है न कि 'ये किस तरह इतने दिन बिताते होंगे?' परन्तु आत्मार्थिता लगने के बाद पाकिस्तानियों के आतंक से बचने के लिये जो साहस किया जाता है, वैसा ही साहस अनायास हो जाता है। अन्तर में आत्मार्थिता नहीं लगने पर कायरता के ही विचार आते हैं कि 'बाप रे। इतना कैसे सहन किया जाय? इतने सारे रुपये कैसे दे दिये जायें ?' आत्मार्थिता जगाओ, फिर ऊंचे दान-शील-तप-भाव सुलभ बन जाते हैं।
खुद की आत्मा को बचाने के लिये ढील कैसी ?
मायादित्य प्राण बचाने के लिए दौड़ा चला जा रहा है । दूर से दौड़कर आते हुए भील के येले ने देखा कि शिकार तो भाग रहा है, इसलिये बाण छोड़े। परन्तु मायादित्य
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