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इस अनार्य के पास इसमें से कुछ न रहे । उसने दिव्यशक्ति से जोरदार तूफान पैदा किया। समुद्र में बड़ी-बड़ी लहरें उछलने लगीं। ऊपर बादल गड़गड़ा रहे हैं । तूफानी हवा बड़े-बड़े मत्स्य, मगरमच्छ व जहाजों को उछालती है। जहाज समुद्र में झोले खा रहा है। सढ फट गया, खंभे टूट गये, ऊपर से पत्थर गिर रहे हैं, बिजली चमक रही है, घोर गर्जना हो रही है, आकाश तो जैसे फट रहा है। तूफान में चढ़े हुए महासागर ने प्रलयकाल का विकराल रुप धारण किया।
जहाज में बैठे हुए लोभदेव व उसके आदमियों के हृदय भय से कांपने लगे। घबराहट तो कैसी? बिजली का चमकना, बादलों की बड़ी शिला गिरने जैसी गडगडाहट, समुद्र की लहरों का पहाड़ जितना ऊपर उछलकर नीचे गिरना, इसके साथ ही जहाज का भी ऊपर उछलकर फिर से नीचे गिरना ... मानों प्रलयकाल आया ... प्राण तो जैसे सूखने लगे।
‘रक्षण की प्रार्थना :- अब वहाँ कोई मानवी शक्ति तो बचा सके, ऐसी संभावना नजर नहीं आती, तो अब क्या करे? सार्थवाह लोभदेव खिन्न बन गया। लोग तो अशरणअनाथ-निराधार जैसे हो गये। कोई नारायण का स्तवपाठ बोलने लगा, तो कोई चंडिका की स्तुति करने लगा, कोई शंकर की यात्रा की मनौती करने लगा, कोई ऐसी मन्नत मानता है कि 'यह उपद्रव टल जाय, तो इतने ब्राह्मणों को भोजन कराऊंगा।' कोई आकाश के सामने देखकर डाकिनी, शाकिनी आदि माताओं, सूर्य, यक्ष आदि को संबोधित करके दीनता से हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाते हुए कहता है, 'हे देवों ! हे दानवों! हमसे क्या पाप हुआ है? आप क्यों कोपायमान हुए हैं? हम तो आपकी मेहरबानी मांगते हैं। आपकी मेहरबानी की ही एक आशा है। हम अशरण हैं, निराधार हैं। हमें बचाईये, बचाईये! हे देवताओं ! हमारी रक्षा कीजिये !'
परन्तु जहाँ कर्म ही बिगड़े हो, वहाँ देव को भी कैसे दया आये ? देव दयालु नहीं हैं, ऐसी बात नहीं ! किन्तु इस लोभदेव व उसके साथीदारों के अशुभ कर्म का उदय देव को भी दया नहीं करने देता । इसीलिये जब ये लोग गिड़गिड़ाकर करुण स्वर से अर्जी करते हैं, तब देवता और भी अधिक उत्पात मचाता है।
कैसे-कैसे भयंकर उत्पात होते हैं ?
आज तो मानव का शिकार खाने मिलेगा, इस हर्ष से बेताल खिलकर हँस रहे हैं, योगिनियाँ नाच रही हैं । बड़ी डाकिनियां मुंह की गुफा में से अग्नि की ज्वालायें निकाल रही हैं। उनके बड़े-बड़े मुंह की करवत जैसी दंत-पंक्ति 'अभी तुझे खाऊं, खाऊ' ऐसी विकरालता बता रही है । ये डाकिनियाँ भूखी मांसखाऊ सियारनी जैसी भयंकर आवाजें कर रही है, तो दूसरी ओर गिद्धों की फौज मूर्दे मिलने के आनन्द में नाचती-हँसती दिख रही है! आकाश चारों ओर अग्नि की ज्वालाओं से व्याप्त हो गया है, मानों उसने तो रास्ता
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