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क्योंकि उनका स्वभाव वगैरह अनुकूल न हो तो कैसे चलेगा ? यहाँ तो चारित्र लेकर सारी जिन्दगी बितानी है ।'
वह बहन अच्छे उच्च कुलीन सुखी घर की कन्या थी । क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि उन्होंने क्या उत्तर दिया ? बहन ने एक ही वाक्य में कहा - 'मुझे ऐसा परिचय नहीं है, लेकिन आप भला तो जग भला ।'
'आप भला तो जग भला' की कैसी सुन्दर मौलिक समझ है ? जहाँ यह सिद्धान्त ग्रहण कर लिया तो फिर तो किसी के साथ कुछे टेढ़ा बर्ताव करने का सवाल ही नहीं और किसी की कोई बात वक्र ढंग से लेने का भी प्रश्न नहीं। आप अर्थात् 'स्वयं' भले बने रहना है न ? फिर भलाई अर्थात् अच्छापन, सज्जनता, सद्गृहस्थता; ये सब सरलस्वच्छ, तथा मैत्री-करुणा भरे हृदय से आकृति और प्रवृत्ति पर निभती हैं। भीतर से हृदय शुभ भावों से भरा हो, मुखाकृति चक्षु आदि भी सौम्य और स्नेह सौहार्दपूर्ण हैं, साथ ही वाणी भी मधुर, सरल, सहृदयतापूर्ण हो, तब वक्रता, कठोरता, स्वार्थमूढता कैसे टिक सकती हैं ?
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अपने दिल की ऐसी भलाई अगले के साथ के व्यवहार में भी कुछ टेढापन नहीं देखेगी । अगले ने सरासर कुटिल, क्रोधपूर्ण या स्वार्थी बर्ताव किया होगा तो उसमें से शुभतत्त्व ही ग्रहण करेगी। दूसरा कपट से दुखियारेपन की दिखावट करें तो भी उस कपट की कल्पना किये बिना सहानभूति दिखाएगी। दूसरे ने गुस्सा दिखाया होगा तो भी यह सज्जन हृदय उस के प्रति कारुण्य रखकर शांति रखेगा। वह लोभवश स्वार्थ-साधन करता होगा तो भी यह मानो परोपकार - भलाई करने का मौका मिला समझ कर सहायता करेगा ।
बस, जो आप भला हो उसे जीवन के सभी प्रसंगों में (१) अच्छा ही देखना (२) अच्छा ही करना और (३) अच्छा ही कमाना प्राप्त होता है।
(श्रीपाल की भलाई
धवलसेठ ने बहुत कुटिलता की, परन्तु श्रीपाल कुमार के भले दिल ने अच्छा ही देखना, अच्छा ही करना और अच्छा ही कमाना ऐसा ध्येय रखा, अतः एव वे इतिहास के पृष्ठों में अमर हो गये न ?
क्या माया और शठता से जीवन में सफलता मिल सकती है ?
संकुचित द्रष्टि से मत देखिये; वरना जीवन की भलाई, जीवन का अर्क, जीवन की सुगन्ध हाथ नहीं आएगी। अल्प बुद्धि से सोचने पर तो ऐसा लगेगा कि ऐसी भलाई करने जाएँ तब तो शठ को शठता करना आसान बन जाए और हम तो लुट जाएँ । परन्तु इस अल्प विचार में तो संपूर्ण कर्म सिद्धान्त ही भुला दिया जाता है, और ऐसा मान लिया जाता है कि 'जो कुछ सफलता मिलती है, कुटिलता, माया, वक्रता से और टेढे के साथ टेढा, नंगे के प्रति नंगा बनने से मिलती है।' किन्तु यह मान्यता गलत है ।
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