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ध्यान आदि का समावेश होता है। ये बंधे हुए कर्मों का नाश करने वाले हैं । यह दूसरी साधना।
इसके साथ संयम आवश्यक है। प्रतिज्ञा पूर्वक हिंसादि से निवृत्ति इन्द्रियों पर संयमन, कषाय-जय आदि चाहिए, जिससे नया कर्ममल न बढे । तपमार्ग का सेवन तो किया जाय किंतु साथ में असंयम अर्थात् हिंसादि खुले हों, इन्द्रियों के विषय-भोग जारी हों, कषाय भभकते रहते हों, तो तप के द्वारा पुराने कर्ममल का नाश तो होता रहेगा, लेकिन इस असंयम द्वारा नया कचरा-मैल इकट्ठा होता रहेगा, अतः ऐसा क्षण कभी नहीं आएगा जब सर्वमलत्याग अर्थात् सर्वशुद्धि प्रकट हो । अतः तप के साथ संयम भी उतना ही आवश्यक है।
चारित्र की याचना :
आचार्य महाराज धर्मनन्दन ने ज्यों ही यह मार्ग बताया कि उसी समय मानभट ने उनके चरणों में गिरकर कहा - 'प्रभो! आपने इस सेवक पर बड़ा उपकार किया कि पापमल साफ करने का और अंतिम सिद्धि प्राप्त करने का यह प्रभावशाली मार्ग बताया। अतः अब मुझ पर मेहरबानी कीजिए और यदि मैं आपको योग्य लगता होऊँ तो मुझे यह मार्ग दीजिए।
चारित्र की योग्यता है, कषाय-शान्ति :
आचार्य महाराज ने देखा कि मानभट के कषाय शान्त हो गये हैं; अतः उसे चारित्र के लिए योग्य मानकर साधु-दीक्षा दी। चारित्र के लिए कषाय की शान्ति योग्यता का लक्षण है। चारित्र ग्रहण करनेवाले के दिल में यदि क्रोध की आग सुलगती हो, अभिमान का पारा चढ़ा हुआ रहता हो, माया की गिंडली बनी रहती हो या कोई सांसारिक लोभ, ममता, आसक्ति न छूटती हो तो वह चारित्र लेकर क्या पाल सकेगा? चारित्र में तो क्षमा आदि दस प्रकार का यतिधर्म पालना मुख्य होता है। जहाँ कषाय धधकते हों वहाँ यह संभव नहीं। अतः कषायों की शान्ति चारित्र की योग्यता का लक्षण है। मानभट ने कषाय शान्त कर के चारित्र अंगीकार किया, और मुनि बने । - कथासार :
कथानायक कुवलयानंद राजकुमार दिव्य घोडे के द्वारा हरण किया जाकर जंगल में विशिष्ट ज्ञानी महामुनि के पास पहुंचा था। 'घोडा कौन है ? क्यों हर कर लाया?' आदि के समाधान में राजा पुरन्दरदत्त का अधिकार कथानक कहते हैं। वह राजा पुरंदरदत्त जैन मंत्री वासव की चतुराई से आचार्य महाराज धर्मनन्दन के संपर्क में आता है। आचार्य महाराज ने तब संसार के कारणभूत क्रोध, मान, माया, लोभ और मोह इन में से प्रत्येक की भयंकरता बताते हए क्रोध पर जीवन्त उदाहरण के रुप में चंडसोम की और मान पर मानभट की जीवन-कथाएँ बताकर उन दोनों को दीक्षा दी।
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