Book Title: Kulak Sangraha
Author(s): Balabhai Kakalbhai
Publisher: Balabhai Kakalbhai

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Page 4
________________ साधु साधवी श्रावक श्राविका जे तेमनो लाभ लेवा उत्सुक होय तेमने घणी सगवड थइ पडे. एवामां श्रेयस्कर मंडळ तरफथी आठ कुलकोनो संग्रह बहार पडेलो मळ्यो, तेम छतां शोध करतां मालम पड के हजु ते सिवाय बीजां नव कुलको बाकी रहे छे तेथी उपर लखेली कुलक संग्रह, अमदावाद विद्याशाळावाळी प्रकरणमाळाओ, मास्तर भोगीलाल ताराचंदवाली प्रकरणमाळा तथा आत्मावबोध कुलक विगेरे पुस्तकोनी मदद लेइ आ नाना पुस्तकमां कुलकोनो संग्रह करवामां आव्यो छे; मा सदरहु पुस्तकोना प्रसिद्ध कर्त्ताओनो हुं तेमना पुस्तकोनी मदद माटे उपकार मानुं छु. तेमां श्रेयस्कर मंडळवाळा कुलक संग्रहमां मागधी भाषामां रचेला कुलकोनो गुजरातीमां भावार्थ लखी आपनार शांतमूर्ति श्रीमान् कर्पूरविजयजी महाराज साहेबनो अंतःकरण पूर्वक उपकार मानुं हुं अने आ कुलक संग्रह मधेन जीवानुशास्ति, इंद्रियादि विकार निरोध, कर्म, दशश्रावक अने इरियावहि ए पांच कुलक मूळने घणो श्रम लेइ सुधारनार तथा गुजराती भाषांतर करी आपनार पंडितजी सुखलालजी भाइ तथा भगवानदास हरखचंदनो सविनय अंतःकरण पूर्वक आभार मानुं छं. आ पुस्तकनो अंदर कानो, मात्रा, मींडी विगेरे जे कांइ जिनाज्ञा विरुद्ध लखाण लखाणं होय अथवा प्रुफ सुधारतां दृष्टि दोषथी जे भूल रही गइ होय तेने माटे चतुर्विध श्रीसंघनी पासे हुं मिथ्या दुष्कृत मा छु. वळी आ ग्रंथने उंचे आसने मूकी मुखे यत्ना राखीने वांचवा मारी नम्र भलामण छे. छी. श्रीसंघनो दासानुदास, शा. बालाभाई ककलभाई .. मांडवीनी पोळ, नागजी मुदरनी पोळं अमदावाद. ता. १०-४-१५. आ पुस्तकनी अनुक्रमणिका खेले पाने जूओ.

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