Book Title: Krushi Karm aur Jain Dharm
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Shobhachad Bharilla

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Page 5
________________ कृषिकर्म और जैनधर्म [लेखक:-श्री पं० शोभाचन्द्र भारिल्ल, न्यायतीर्थ.] कृषिकर्म, जैनधर्म से विरुद्ध है या अविरुद्ध, इस बात का विचार करने से पूर्व यह देखना उचित होगा कि धर्स क्या है ? और जीवन में धर्म का स्थान क्या है ? क्या धर्म कुछ विशिष्ट व्यक्तियों के लिए है या सर्वसाधारण के हित के लिए? ' इन प्रश्नों पर सरसरी निगाह डालने से कृषिकर्म का जैन। धर्म के साथ जो संवैध है, उसे समझना सरल हो जायगा। . धर्म जीवन का अमृत है-जीवन का संस्कार है। अतएव वह जीवमात्र के हित के लिए है। धर्म का प्रांगण इतना विशाल है कि उसमें किसी भी प्राणी के लिए स्थान की कमी नहीं है। यह बात दूसरी है कि कोई धर्म की छत्रछाया में न जावे और उससे अलग ही रहने में अपनी भलाई समझे; मगर धर्म किसी को अपनी शीतल छाया में आने से नहीं रोकता ।

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