Book Title: Krushi Karm aur Jain Dharm
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Shobhachad Bharilla

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Page 3
________________ दो शब्द 'कृषिकर्म और जैनधर्म' नामक पुस्तक पाठकों के कर-कमलों में उपस्थित है। पुस्तक यद्यपि कद में छोटी है, किन्तु जिस विषय पर प्रकाश डालने के लिये वह लिखी गई है, उस विषय पर गहरा प्रकाश डालती हैं। इसमें तीन विद्वान् लेखकों के तीन निबंध संग्रहीत हैं। निबंधों की भाषा शिष्ट, सभ्य और मधुर है। साधारणतया विवादग्रस्त विषयों पर लिखते समय लेखक कभी कभी कटुता का प्राश्रय ले लेते हैं, परन्तु तत्त्व विचार की यह प्रणाली वांछनीय नहीं कही जा सकती। लेखकों को अपने विरुद्ध विचार रखने वालों के प्रति पूर्ण शिष्ट होना चाहिए। प्रसन्नता की बात है कि इस पुस्तक के लेखकों ने इसी पद्धति का अनुसरण किया है। कृषि के संबंध में हमारे यहाँ कुछ मनभेद चल रहा है। यदि निष्पक्ष और उदार दृष्टिकोण अपना कर इस विषय में विचार किया जाय तो मतैक्य होना कोई कठिन बात नहीं है। इस पुस्तक के तीनों निबंध इस विषय के मतभेद को दूर करने में उपयोगी होंगे, ऐसी आशा है। अच्छा तो यह होता कि किसी शास्त्रज्ञाता विद्वान् ने दूसरा पहलू भी उपस्थित किया होता, परन्तु किसी ने ऐला किया नहीं। बरेली (भोपाल) निवासी सेठ रतनलालजी नाहर ने एक प्रतियोगिता का आयोजन किया था। वह चाहते थे कि कृषि के संबंध में जैन शास्त्रों का मन्तव्य हमारे सामने उपस्थित हो । उन्होंने इसके लिए पारितोषिक की घोषणा की और नि० लि. महानुभावों को निबंधपरीक्षक निर्वाचित किया

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