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विषयानुक्रमणी
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३८. द्वितीयं परिशिष्टम्
पृ० सं० ६०१-५६ [श्रीपतिदत्तप्रणीत कातन्त्रपरिशिष्ट - समासप्रकरण के १८२, दुर्गसिंहप्रणीत राजादिगण के ६५ सूत्र, भाष्य आदि ग्रन्थों के तथा शाक्य पातञ्जल-भर्तृहरि, काश्यप आदि आचार्यों के विविध अभिमत, 'देवानांप्रियः' शब्द के दो अर्थ = मूर्ख तथा छाग, अनेक न्यायवचनों का उल्लेख, 'शाकप्रधान:' में शाक शब्द का अर्थ शक्ति, 'उपादानकारण द्रव्य को प्रकृति के रूप में मानना, शिष्टाचार का अनुसरण, 'नास्तिक इन्द्रियप्रधान होते हैं' आदि विविध उपयोगी विचारों का उपस्थापन ] । ३९. तृतीयं परिशिष्टम् = तमादिवृत्तिः पृ० सं०६५७-६२ [ दुर्गसिंहद्वारा प्रणीत तमादिवृत्ति के ३२ सूत्र, 'तराम्- तमाम् इष्ठ-ईयन्सु-रूपकल्प-देश्य-देशीय-पाश-चरट्-रूप्य शस्-कृत्वस् - धा- सुच्- मयट् - च्वि-साति त्रा- डाच्' इन २० प्रत्ययों का विधान ] ।
४०. चतुर्थं परिशिष्टम् = रूपसिद्धिशब्दाः
पृ० सं०६६४-७८ [ इसमें कारक, समास तथा तद्धितपाद के ७५७ शब्दों की वर्णानुक्रमसूची प्रस्तुत की गई है, जिन्हें आचार्य दुर्गसिंह ने वृत्तिग्रन्थ में उदाहरण के रूप में दिया है तथा यहाँ समीक्षाखण्ड के अन्तर्गत सूत्रकार्यप्रदर्शनपुरस्सर उनकी रूपसिद्धि की गई है। जैसे- ' उपकुम्भम्, दिवि देवाः, षण्णाम्, अजा, विदुषी, नीलोत्पलम्, महादेवः, गार्ग्यः' इत्यादि ] ।
४१. पञ्चमं परिशिष्टम् = श्लोकसूची
पृ० सं०६७९-९६ [ दुर्गवृत्ति - दुर्गटीका-विवरणपञ्जिका-कलापचन्द्र नामक चार टीकाओं में उद्धृत २५० श्लोकों का सङ्ग्रह, इसमें कुछ अर्धश्लोक तथा कुछ पादश्लोक भी सम्मिलित हैं ] ।
४२. षष्ठं परिशिष्टम् = व्युत्पत्तिपरक शब्दावली
पृ० सं०६९७-७११ [ दुर्गवृत्ति-दुर्गटीका-विवरणपञ्जिका-कलापचन्द्र नामक व्याख्याओं में जिनकी
व्युत्पत्ति दी गई है, ऐसे ७४९ शब्दों का सङ्ग्रह ] ।
४३. सप्तमं परिशिष्टम् = पारिभाषिक शब्दावली
पृ० सं०७१२-१४ [ उक्त चार व्याख्याओं में प्रयुक्त १४७ पारिभाषिक शब्दों की सूची ] ।