Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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विषय
पृष्ठ
. ( ११ ) विषय उच्चारणाके अनुसार नोकषायोंके
और जुगुप्सा
२६६ बन्धक कालका अल्पबहुत्व २१३ | सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व
२७० इस विषयमें व्याख्यानाचार्यका
स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य और रति २७०-२७१ अभिप्राय २१३-२१४ चार गतियों में
२७२ सर्व-नोसर्वस्थितिविभक्ति २२६ | उच्चारणाके अनुसार काल
२७२-२६० उत्कृष्ट-अनुत्कृष्टस्थिति० २२६ जघन्य स्थितिका काल
२६०-३१५ जघन्थ-अजघन्यस्थिति
२२६-२२७ | मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिसादि-अनादि-ध्र व-अध्रुवस्थि० २२७-२२८ थ्यात्व, सोलह कषाय और एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व २२६-२६६
तीन वेद
२६०-२६१ उत्कृष्ट स्थितिका स्वामित्व २२६-२४१
छह नोकषाय
२६१-२६२ मिथ्यात्व
२२६-२३० जघन्य स्थिति और जघन्य अद्धासोलह कषाय
२३० च्छेद तथा उत्कृष्ट स्थिति और सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व २३१-२३२
___ उत्कृष्ट अद्धाच्छेदका विचार २६१-२६२ नौ नोकषाय
२३३-२३४ | उच्चारणाके अनुसार जघन्य १४ मार्गणाओंमें उच्चारणाके
स्थितिका काल
२६२-३१५ अनुसार स्वामित्व २३४-२४१ अन्तर
३१६-३४५ जघन्य स्थितिका स्वामित्व २४१-२६६ | उत्कृष्ट स्थितिका अन्तर
३१६-३३० मिथ्यात्व
२४१-२४२ मिथ्यात्व और १६ कषाय ३१६-३१७ सम्यक्त्व
नौ नोकषाय
३१७-३१८ सम्यग्मिथ्यात्व
२४४ सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व ३१८-३१६ अनन्तानुबन्धी चार
२४५-२४७ उच्चारणाके अनुसार उत्कृष्ट स्थितिमध्यकी आठ कषाय २४०-२४६ का अन्तर
३१६-३३० क्रोधसंज्वलन २४१-२५० जघन्य स्थितिका अन्तर
३३२-३४५ मान और माया संज्वलन
२५० मिथ्यात्व,सम्यक्त्व, बारह कषाय लोभ संज्वलन २५१ . और नौ नोकषाय
३३१ स्त्रीवेद
२५१-२५२ | सम्यग्मिथ्यात्व और अनन्तानुपुरुषवेद २५२-२५३ बन्धी चार
३३१-३३२ नपुंसकवेद
२५३ उच्चारणाके अनुसार जघन्य स्थितिछह नोकषाय
२५३-२५४ का अन्तर
३३२-३४५ नारकियोंमें जघन्य स्वामित्व २५४-२५८
नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचय ३४५-३५३ शेष गतियोंमें ,, ,
२५८ अर्थपद
३४५-३४६ शेष मार्गणाओंमें उच्चारणाके अनु
उत्कृष्ट स्थितिका भङ्गविचय ३४६-३४६ - सार जघन्य स्वामित्व २५८-२६६ | मिथ्यात्वकी अपेक्षा भङ्गविचय ३४६-३४८ काल
२६६-३१५
शेष प्रकृतियोंकी अपेक्षा भङ्गविचय ३४८ उत्कृष्ट स्थितिविभक्तिका काल २६७-२६० | उच्चारणाके अनुसार भङ्गविचय ३४८-३४६ मिथ्यात्व
२६७-२६८ | जघन्य स्थितिका भङ्गविचय ३४६-३५३ सोलह कषाय २६८-२६६ | अर्थपद
३५० पुनसकवेद, अरति, शोक, भय
मिथ्यात्वकी अपेक्षा भङ्गविचय ३५०-३५१
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