Book Title: Kasaypahudam Part 03
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh

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Page 12
________________ विषय-सूची स्थितिविभक्ति पु० १ पृष्ठ | विषय کہ اس اس १६-२५ १६-२० २०-२५ २५-४७ २५-३६ ३७-४७ ४७-५३ ४७-५० ५१-५३ ५-६ विषय मंगलाचरण स्वामित्व स्थितिविभक्ति के दो भेद उत्कृष्ट स्वामित्व स्थितिविभक्ति की सार्थकता जघन्य स्वामित्व स्थितिविभक्तिके दो भेदों का काल __ सयुक्तिक निर्देश २-३ उत्कृष्ट काल मूल प्रकृतिस्थितिका विशेष जघन्य काल ' ऊहापोह मूलोच्चारणा पाठका निर्देश स्थितिविभक्तिका अर्थपद अन्तरानुगम मूल प्रकृतिस्थितिमें विभक्ति उत्कृष्ट अन्तरानुगम * पदकी सार्थकता जघन्य अन्तरानुगम उत्तर प्रकृतिस्थितिमें विभक्ति नाना जीवोंकी अपेक्षा पदकी सार्थकता ____ भङ्गविचय उत्कृष्ट भङ्गविचय मूल प्रकृतिस्थितिविभक्तिके जघन्य भङ्गविचय अनुयोगद्वार भागाभागानुगम यही अनुयोगद्वार उत्तर प्रकृतिस्थिति उत्कृष्ट भागाभागानुगम विभक्तिमें भी लागू होते हैं जघन्य भागाभागानुगम मलप्रकृतिस्थितिविभक्ति ८-१६० परिमाणानुगम २४ अनुयोगद्वार ८-६५ उत्कृष्ट परिमाणानुगम अद्धाच्छेद -१४ जघन्य परिमाणानुगम उत्कृष्ट अद्धाच्छेद ह-११ क्षेत्रानुगम जघन्य अद्धाच्छेद १६-१४ उत्कृष्ट क्षेत्रानुगम सर्व-नोसर्वविभक्ति जघन्य क्षेत्रानुगम उत्कृष्ट-अनुत्कृष्टवि० स्पर्शनानुगम जघन्य-अजघन्यवि० उत्कृष्ट स्पर्शनानुगम सर्वस्थिति और श्रद्धाच्छेदकी जघन्य स्पर्शनानुगम उत्कृष्ट स्थितिमें अन्तर कथन १४-१५ कालानुगम उत्कृष्ट विभक्ति और उत्कृष्ट उत्कृष्ट कालानुगम अद्धाच्छेदमें अन्तर कथन जघन्य कालानुगम सर्वविभक्ति और उत्कृष्ट अन्तरानुगम विभक्तिमें अन्तर कथन उत्कृष्ट अन्तरानुगम सादि-अनादि ध्रुव-अध्रुववि० १५-१६ | जघन्य अन्तरानुगम ५४-५७ ५४-५५ ५६-५७ ५०-६० પ-પૂe ५६-६० ६१-६३ ६१-६२ ६२-६३ ६४-६७ ६४-६५ ६६-६७ ६८-८० ६८-७७ ७७-८० ८०-८६ ८०-२ ८३-८६ ८८-६२ ८८-६ १०-१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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