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इस लेखन-सम्पादन में जिन ग्रन्थों का अध्ययन कर मैंने उनके विचार व भाव ग्रहण किये हैं, मैं उन सभी ग्रन्थकारों/विद्वानों का हृदय से कृतज्ञ हूँ।
पुस्तक के शुद्ध एवं सुन्दर मुद्रण के लिए श्रीयुत श्रीचन्द जी सुराना का सहयोग तथा इसके प्रकाशन कार्य में परम गुरुभक्त उदारमना दानवीर डॉ. चम्पालाल जी देसरड़ा की अनुकरणीय साहित्यिक रुचि भी अभिनन्दनीय है। जिसके कारण प्रस्तुत ग्रन्थ शीघ्र प्रकाशित हो सका है।
मैं पुनः पाठकों से अनुरोध करता हूँ कि जैनधर्म के इस विश्वविजयी कर्मसिद्धान्त को वे समझें और जीवन की प्रत्येक समस्या का शान्तिपूर्ण समाधान प्राप्त करें। समता, सरलता, सौम्यता का जन-जन में संचार हो, यही मंगल मनीषा ।
-आचार्य देवेन्द्र मुनि शक्तिनगर जैन स्थानक दिल्ली दिनांक :
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