Book Title: Kaise Sulzaye Man ki Ulzan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 21
________________ बौक ने लगभग 1500 छात्रों पर एक प्रयोग किया। उन्होंने ऐसे छात्रों को चुना जो सदैव जुकाम और पेट के रोग से ग्रस्त रहते थे। रोगियों से गहरी बात करने पर उन्हें पता लगा उनमें प्रायः अधिकांश विद्यार्थी ऐसे थे जो भय, गम, अवसाद, निराशा या तनाव से पीड़ित थे। डॉ. बौक ने प्रयोग किया और आश्चर्यजनक परिणाम सामने आये कि जुकाम और पेट के रोग तब मिट गये जब मनोवैज्ञानिक समझ देकर भय और तनाव से छात्रों को मुक्त कर दिया गया। मन का तन पर गहरा प्रभाव पड़ता है, अगर तनावग्रस्त व्यक्तिं को उसके रोग के मूल कारणों का पता चल जाये तो वह शीघ्र स्वस्थ हो सकता है। भय, चिंता, फिक्र ये सबसे पहले हमारे दिमाग पर अपना प्रभाव डालते हैं। शरीर की संचालन-व्यवस्था में मस्तिष्क का सबसे बड़ा हाथ है। विपरीत मनोभाव मानसिक खिंचाव पैदा करते हैं। मानसिक खिंचाव हमारे शरीर पर अपना विपरीत प्रभाव छोड़ता है। परिणामस्वरूप शरीर में विभिन्न प्रकार के रोग पनपने शुरू हो जाते हैं। माइग्रेन की समस्या का मूल कारण भी तनाव ही है। साथ ही रोगप्रतिरोधिक क्षमता में कमी आने के कारण आए दिन कई तरह के रोग पैदा हो जाते हैं। उससे याददाश्त तो कमजोर होती ही है। मन के हारे हार है तनाव पहला प्रभाव डालता है व्यक्ति की कार्यकुशलता पर। जैसेजैसे व्यक्ति इसके मकड़जाल में उलझता है, उसके मनोबल में कमजोरी आनी शुरू हो जाती है। हमने कई बार देखा है कि जब किसी टूर्नामेंट में दो देशों की टीम एक मैदान में उतरती हैं तो लोग पहले ही अंदेशा लगा लेते हैं, खिलाड़ियों के चेहरे को देखकर कि कौन जीतेगा, कौन हारेगा? जो मैदान में उतरने से पहले ही दूसरी टीम को लेकर मनोवैज्ञानिक दबाव में आ गया है, उसका हारना तय हो जाता है। अगर आप दूसरी टीम से जीतना चाहते हैं तो मैदान में उतरने से पहले ही उस पर इतना मनोवैज्ञानिक दबाव डाल दीजिये कि मानसिक रूप से वह स्वयं को हारा हुआ महसूस करने लग जाये। ऐसी स्थिति में ____12 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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