Book Title: Kaise Sulzaye Man ki Ulzan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 119
________________ लोग हमेशा प्रसन्न रहते हैं वहाँ स्वर्ग बसता है। जिस परिवार में लोग खिन्न मन से रहते हैं वहाँ कभी शांति नहीं होती। हम मकान को गलीचे, अल्मारी, फर्नीचर से सजा सकते हैं लेकिन वह घर स्वर्ग तभी बनता है जब घर के सभी लोग प्रसन्न रहें। प्रसन्नता का चौथा प्रभाव है कि व्यक्ति के सम्बन्ध सभी के साथ मधुर रहते हैं। हो सकता है कि कोई आपसे खुशी-खुशी मिलने आया हो लेकिन आप भीतर से नाखुश थे अत: आपने उसकी खुशी का कोई जवाब नहीं दिया। उस समय सामने वाला व्यक्ति यही समझेगा कि आप उसे देखकर नाखुश हुए हैं। हमारी प्रसन्नता से हमारे सम्बन्धों में मधुरता आती है। अपने घर-परिवार में प्रसन्नता का ऐसा पेड़ लगाएँ जिसकी छाया पड़ौसी तक जाए ताकि हमारी प्रसन्नता का विस्तार पड़ौसी और समाज तक भी हो। बुझाएँ चिंता की चिंगारी __ चिंता हमारी प्रसन्नता में सबसे अधिक बाधक है। यह काम ऐसा क्यों हुआ, ऐसा कैसे हो गया, मेरे साथ ऐसा कैसे हो सकता है, मैं तो उल्टे-सीधे काम करता ही नहीं फिर मुझे ऐसा परिणाम कैसे मिला, व्यक्ति के मन की यही उधेड़बुन चिंता है। जब भी मन में इस प्रकार के विकल्प जगें, उन्हें सहज छोड़ दें। जो होना था सो हो गया, हम अपने मन की शांति को क्यों भंग करें? चिंता तो चिता से भी ज्यादा खतरनाक होती है। चिता तो मरने के बाद जलाती है लेकिन चिंता से व्यक्ति जीते जी जलता रहता है। चिंता भी ऐसी कि उसका कोई हल नहीं है। समय ही उसका सबसे बड़ा हल है। पुत्र है, अगर वह लायक निकल गया तो ठीक और यदि नालायक निकला तो कैसी चिंता? समय पर छोड़ दें। तुम्हारी चिंता का उस पर कोई असर नहीं होने वाला। जीवन में जब जो होना होता है, वह होता है अतः व्यक्ति व्यर्थ की चिंताएँ न पालें। जो चिंता से मुक्त रहता है और होनी को होनी मानकर स्वीकार कर लेता है, वही सदाबहार प्रसन्न रह सकता है। दूसरे फले, इसलिए न जलें ___ हमारी प्रसन्नता का दूसरा बाधक तत्त्व ईर्ष्या है। मैं कई दफा लोगों के 110 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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