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सबको दिखाकर पूछते हो कि यह नोट किसका है? तुम्हारी साधुता तो इसमें है कि जब तुम्हें पाँच सौ का भी नोट मिले तब भी तुम सबसे पूछो कि यह किसका नोट है ?
हम ईमानदार तभी तक हैं जब तक बेईमानी का मौका न मिले। बेइमानी का मौका मिलते ही ईमानदारी गधे के सिर से सींग की तरह गायब हो जाती है। और तो और ऐसी पत्नी भी खोजना मुश्किल है जिसने कभी-नकभी अपने पति के जेब में से चुपके से रुपये गायब न किये हों । करोड़पति की पत्नी भी क्यों न हो पर उसने कभी-न-कभी पति की जेब जरूर साफ की होगी। आप बताएं आप में से कौन व्यक्ति ऐसा है जिसने बचपन में अपने पिता की जेब या मम्मी के पर्स में चुपके से पैसे निकालकर टाफी न खायी, आइसक्रीम न खायी हो। शायद मैंने भी कभी-न-कभी बचपन में ऐसा किया ही होगा । जिन्होंने बड़ी चोरियाँ की वे उद्योगपति कहलाने लगे। जिन्होंने छोटी-मोटी चोरियां की वे छोटे व्यापारी बन गये और जिन्हें बेईमानी का मौका भी न मिला वे सब मजबूरी में ईमानदार बन गये और अपनी पीठ थपथपाने लगे। हमारी ईमानदारी की हालत बड़ी दयनीय है ।
हमारी मर्यादाएं और मूल्य गिरते जा रहे हैं, न हम भ्रष्टाचार के भूत से डरते हैं और न ही चरित्रहीनता की चुडैल से । मेरी बात आपके मन का मनोरंजन कर देगी पर मैंने देखा, एक शहर में दीवार पर पोस्टर लगे थे, कांग्रेस को वोट दो, भाजपा को वोट दो, बसपा को वोट दो, इन्हीं चुनावी पोस्टरों के नीचे एक फिल्मी पोस्टर लगा था जिस पर लिखा था, हम सब चोर हैं । रूप-रंग से नहीं, अंग-अंग से बोले साधुता
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साधुता का अर्थ केवल संन्यास में ही नहीं है । साधुता केवल वेश में नहीं अटकती हैं, साधुता स्थान से भी नहीं जुड़ती है, साधुता जीवन के अंगअंग से बोले । जहाँ-जहाँ लोभ की वृत्ति जगे, काम-वासना की वृत्ति जगे, अहंकार का निमित्त मिले और क्रोध के विकारों का निमित्त मिले, वहाँ-वहाँ व्यक्ति अपने मन पर संयम रखता है तो गृहस्थ होकर भी साधु है। पति-पत्नी साथ जी रहे हैं तो भी उनके मन में संयम के प्रति श्रद्धा हो । फिसलने का मौका मिले तब भी तुम अडिग खड़े हो तो तुम साधु बनने के लायक हो । दांत टूटने
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