Book Title: Kaise Sulzaye Man ki Ulzan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 143
________________ जो पुलिस वालों के साथ जा रहा है, यह कौन है?' पिता ने कहा - 'यह नेता है।' 'तो नेता वह होता है जिसके साथ पांच पुलिस वाले होते हैं,' बच्चे ने कहा, 'ठीक है,' बच्चा समझ गया। थोड़ी देर बाद बच्चे ने देखा कि एक अन्य आदमी के साथ भी पांच पुलिस वाले चल रहे थे। बच्चे ने पिता से पूछा, 'क्या यह भी नेता है?' पिता ने कहा, 'नहीं, यह नेता नहीं है, यह तो चोर है चोर।' 'समझ गया जिनके साथ पांच पुलिस वाले होते हैं वे चोर होते हैं', बच्चे ने कहा, पर मैं यह बात नहीं समझ सका कि पहले वाला नेता और यह दूसरा चोर कैसे हुआ?' तब पिता ने कहा, 'यही तो जीवन है। पहले वाले की सेवा में उसके अधीन पांच पुलिस वाले चल रहे थे और यह दूसरा वाला पुलिस के अधीन चल रहा था।' आप देख लें कि ईश्वर ने आपको भी पांच पुलिस वाले दिये हैं। कान, नाक, आँख, जीभ और स्पर्श का सुख ये पांच पुलिस वाले हैं। अगर आप इनके अधीन चल रहे हैं तो आप इनके गुलाम हैं और ये पांच आपके अधीन हैं तो आप नेता हो जाएंगे। अब आप पर निर्भर है कि आप क्या होना चाहते हैं, कैदी या नेता? जीभ का संयम न रखने के कारण मछली कांटे में फँसती है। आँख का संयम न रख पाने के कारण पतंगा दीपक में जल कर मरता है। शरीर पर संयम न रख पाने के कारण हाथी गड्ढे में जाकर गिरता है। नाक का संयम न रख पाने के कारण भंवरा फूल में बंद होने को मजबूर होता है और कान का संयम न रख पाने के कारण हिरण जाल में फँस जाया करता है। ये एक-एक प्राणी एक-एक इन्द्रिय के असंयम से फँसते हैं लेकिन जो मनुष्य पांचों ही इन्द्रियों में उलझा हुआ है, उसका क्या हाल होगा? प्रत्येक मानव को चाहिये कि वह अपनी इन्द्रियों पर मर्यादा का अंकुश अवश्य रखे। हम खाएं, पीएं, उठे बैठें, चले फिरें कुछ भी करें पर संयम की मर्यादा का साथ रहना श्रेष्ठ है। खाओ पिओ छको मत, बोलो चालो बको मत, देखो भालो तको मत और चालो फिरो थको मत। संयम की मर्यादा बंधन नहीं अपितु निर्मल और व्यवस्थित जीने की शैली है। निरंकुश जीवन व्यर्थ है। मर्यादा चाहे राम के युग में हो या आज, इसे जो भी जिये मर्यादा पुरुषोत्तम वही है। 134 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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