Book Title: Kaise Sulzaye Man ki Ulzan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 139
________________ कर सके। अंदर उतरें, करें रूपांतरण हजारों हजार संतों को सुनने का क्या लाभ अगर जीवन में रूपांतरण घटित न हो ! मुझे याद है, एक बूढ़े बुजुर्ग रोज किसी संत के सत्संग में जाया करते थे, भले ही वहाँ जाकर वे झपकियाँ ही लेते हों, पर सत्संग में जाते रोज थे। उनकी इच्छा थी कि उनका बेटा भी उनके साथ सत्संग में चला करे । वे रोज अपने बेटे से आग्रह करते और कहते 'बेटे, एक बार तो चलो, वहाँ देखो तो हजारों लोग आते हैं । एक दिन तो प्रवचन सुनने चलो।' पिता के बहुत आग्रह करने पर अन्ततः एक दिन बेटा चला ही आया । वहाँ उसने संत की वाणी सुनी। दया, करुणा, प्रेम पर संत उद्बोधन दे रहे थे । वे समझा रहे थे कि कोई घर के दरवाजे पर आ जाए तो उसे भूखा मत लौटाओ, भोजन दे दो, कुछ खाने को दे दो। इस तरह वे दया- दान की बातें बता रहे थे । 1 उस युवक ने सब सुना। अगले दिन की बात है । बेटा दुकान पर बैठा था और दादाजी सत्संग सुनने चले गए थे। जब वे सत्संग से दुकान की ओर लौटे तो देखा कि बेटा दुकान में बैठा है और बाहर जवार की बोरी खुली रखी है जिसको गाय बड़े मजे से खा रही थी । इतने में पिताजी पहुँचे और चिल्लाने लगे, 'अरे बुद्धू, तू देखता नहीं है, बाहर गाय धान खा रही है और तू आराम से बैठा है ।' उसने कहा - 'पिताजी, कल ही तो संतप्रवर ने कहा था कि घर पर कोई भूखा, दीन-दुःखी आ जाए तो उसे भोजन देना चाहिए। ठीक है, दस रुपये का धान खा भी लेगी तो क्या फर्क पड़ेगा? पिताजी ने कहा - ' अरे बेटा, एक दिन प्रवचन सुनने गया उसमें यह हालत ! अरे, तू इसी तरह करता रहा तो हमारा दिवाला ही निकल जाएगा। ये संतों की बातें सुनने के लिये होती हैं, जीने के लिये नहीं। अगर तेरी तरह मैं भी संतों की बातों को जीवन में लागू करना शुरू कर देता तो अभी तक कहाँ पहुँच जाता ! व्यक्ति मनोविनोद के लिये सुनना पसंद करता है। वह अपने मन के रूपान्तरण के लिये सुनना कहाँ पसंद करता है ! मैं जो जीवन की मर्यादाओं की बातें कह रहा हूँ वे मनोविनोद के लिये न हों, मन के रूपान्तरण के लिए हों, जीवन को बदलने के लिए हों । Jain Education International 130 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146