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थे। उन्होंने देखा कि उनके सिर का एक बाल सफेद हो गया है। एक सफेद बाल को देखकर दशरथ की आत्मा आंदोलित हो गई। वे रनिवास में पहुँचे
और बोले, 'आज के बाद संसार में मेरी कोई अनुरक्ति और आसक्ति नहीं रहेगी।' रानियाँ चौंक गई और बोली 'आज यह क्या हो गया? आपके मन में अचानक वैराग्य कैसे जग गया?' दशरथ ने कहा - 'देखो मेरे सिर का एक बाल सफेद हो गया है। अब जीवन को मुक्ति की ओर ले जाने की वेला आ गई है।'
दशरथ ने सिर में एक सफेद बाल देखा और वैराग्य जग गया। जरा आईने में आप अपना चेहरा देखें। कइयों के सारे बाल सफेद हो गए हैं, फिर भी वही आसक्ति और अनुरक्ति बनी हुई है। व्यक्ति स्वयं को पकड़े, स्वयं में उतरे, स्वयं में जीए। बाहर की आसक्ति और अनुरक्ति के बजाय व्यक्ति स्वयं में उतरकर जीए। यह सारा संसार, यह सारी दुनिया बनी-बनायी बंधन की माया है। व्यक्ति ने स्वयं बंधन बाँधे हैं और स्वयं ही आसक्त हो रहा है। कोई किसी को बाँधता नहीं है, हम ही जानबूझकर बँधे और जुड़े हैं। रिजर्वेशन कुछ पल का
आपको किसी गंतव्य स्थान पर जाना है और आपने रिजर्वेशन करा रखा है। नियत समय पर आप स्टेशन पहुँचे, ट्रेन में सवार हुए पर डिब्बे में आपने देखा कि आपकी रिजर्व सीट पर कोई दूसरा बैठा हुआ है। आप उससे कहते हैं, 'उठो भाई, यह मेरी सीट है।' वह भोला-भाला आदमी दूसरी जगह पर बैठ जाता है। आप अपने गंतव्य पर पहुँचकर उतरने लगते हैं कि तभी पीछे से आवाज आती है, ‘रुको!' आप पीछे मुड़कर देखते हैं कि यह वही व्यक्ति है जिसे आपने सीट से उठाया था। आप पूछते हैं - 'क्यों?' वह कहता है, 'अपनी सीट तो लेते जाओ, तुम कह रहे थे ना, कि यह सीट मेरी है।'
याद रखें जिंदगी में की गई सारी व्यवस्थाएँ रिजर्वेशन की तरह हैं, किसी का आठ घंटे का रिजर्वेशन और किसी का चौबीस घंटे का। कुछ महीने
और कुछ वर्षों के रिजर्वेशन पर हम चल रहे हैं। मालूम है, जिस ट्रेन में बैठे हो वह छोड़नी है, जिस डिब्बे में बैठे हो उसमें से उतरना है और जिस सीट पर बैठे हो उसके मोह का त्याग करना है, फिर आसक्ति कैसी?
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