Book Title: Kaise Sulzaye Man ki Ulzan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 129
________________ युवक ने देखा, फकीर की आवाज सुनकर पहाड़ी के शिखर पर गुफा में रहने वाला एक वृद्ध साधु बाहर आया और धीरे-धीरे लकड़ी के सहारे चलते हुए लगभग पन्द्रह मिनट में वह नीचे तलहटी में पहुँचा। उसने आकर पूछा - 'बोलो भैया, मुझे क्यों याद किया?' फकीर ने कहा – 'बस, यों ही आपके दर्शन की इच्छा थी तो आपको नीचे बुला लिया।' बूढ़े साधु बाबा ने आशीर्वाद देते हुए वापस पहाड़ी की चढ़ाई शुरू कर दी। पन्द्रह मिनट तक चलने के बाद वे अपनी गुफा में पहुंचे ही थे कि फिर आवाज आई - 'ओ साधु बाबा, ओ साधु बाबा, जरा नीचे आओ।' साधु बाबा फिर अपनी गुफा से बाहर निकले और लकड़ी के सहारे जैसे-तैसे नीचे पहुंचे। उन्होंने आकर पूछा - 'बोलो भैया, फिर कैसे याद किया?' फकीर ने कहा - 'कुछ नहीं बाबा, बस फिर आपके दर्शन की इच्छा हो गई।' बूढा साधु दो मिनट बात करने के बाद ऊपर चला गया और जैसे ही गुफा में बैठा कि फिर नीचे से आवाज आई - 'ओ साधु बाबा, ओ साधु बाबा, जरा नीचे आओ।' बूढ़ा साधु जिसकी कमर झुकी हुई थी, चेहरे पर झुर्रियाँ छा चुकी थीं, घुटनों में दर्द भी रहा होगा, तब भी लकड़ी का सहारा लेकर एक बार फिर धीरे-धीरे नीचे आया। नीचे आकर पूछा – 'बोलो भैया, फिर कैसे याद किया?' फकीर ने कहा - 'कुछ भी नहीं, फिर आपके दर्शन की इच्छा हो गई थी।' बूढ़ा साधु दुआएं देकर वापस ऊपर चला गया। फकीर अपने घर लौट आया। पीछे-पीछे युवक भी फकीर के साथ आ गया। मर्यादा ही मर्म दोपहर का समय था। चिलचिलाती धूप पड़ रही थी। घर पहुँचकर फकीर ने अपनी पत्नी को आवाज दी, 'अरे सुनो, जरा लालटेन जलाकर लाओ, मुझे कुछ कविताएँ लिखनी हैं।' पत्नी भीतर गई, लालटेन जलाकर लाई और बाहर चौकी पर रख दी। फकीर ने कविताएँ लिखनी शुरू कर दी। शाम होने आ गई। युवक से न रहा गया। वह पूछने लगा – 'फकीर साहब, मेरे प्रश्न का क्या हुआ?' फकीर ने कहा - 'मैंने तो जवाब दे दिया न्!' युवक ने कहा - 'मैं कुछ समझा नहीं, आपने तो कुछ भी जवाब नहीं दिया।' फकीर ने कहा - 120 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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