Book Title: Kaise Sulzaye Man ki Ulzan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 124
________________ रुकी हुई थीं। गाड़ियों में बैठे लोगों के चेहरे पर अपने व्यवसाय-धंधे तथा और भी कई बातों की परेशानियाँ साफ झलक रही थीं। इतने में ही मेरे कानों में भूभू.......... पी पी' की आवाज आई। मैंने देखा कि उन वाहनों में एक व्यक्ति साइकिल लिए खड़ा था। साइकिल पर डण्डे पर लगी छोटी-सी सीट पर एक बच्चा बैठा था। आस-पास खड़ी गाड़ियों को देख कर वह बच्चा हाथ से स्टीरिंग को घूमाने का अभिनय कर रहा था और मुँह से गाड़ी को चलाने की आवाज निकाल रहा था। न केवल मुझे अपितु मेरे साथ चल रहे अन्य लोगों को भी उस बच्चे की इस हरकत को देख कर हँसी आ गई। मुझे लगा कि हमारे इर्द गिर्द कितनी खुशियों के माहौल होते हैं। अभी जयपुर से राजेन्द्र जी ओसवाल मेरे पास आए थे। सुलझे हुए विचार के सेवाभावी व्यक्ति हैं। वे कहने लगे कि उन्होंने गायों की चिकित्सा का शिविर लगाया था। एक गाय का बच्चा ऐसा लाया गया जिसकी दो टांगें टूटी हुई थीं। शिविर में उसका उपचार हुआ। जब वह बछड़ा शिविर में लाया गया तो पीड़ा से इतना कराह रहा था कि एक सैकेंड भी सुख से बैठ ही नहीं पा रहा था। लेकिन सात दिन उपचार के बाद वह अपने पाँवों से चलने लगा। वे बंधु मुझे कहने लगे कि मेरे घर बेटे के जन्म होने पर भी मुझे इतनी खुशी नहीं हुई होगी जितनी उस बछड़े को चलते हुए देख कर हुई। सेवा में सुख का सुकून रतलाम के एक महानुभाव हैं, शांतिलाल जी चौरड़िया। वे जीवदया प्रेमी हैं; एक बार हमारे साथ जोधपुर से नागौर की ओर पैदल चल रहे थे। सुबह के कोई सात बजे होंगे। उन महानुभाव के तीन दिन का उपवास था और साढे आठ-नौ बजे उसकी पूर्णता करनी थी। यकायक हमने देखा कि सड़क के किनारे एक गाय घायल पड़ी थी और उसके पाँव की हड्डियाँ टूट गयी थीं। उसके शरीर से खून बह रहा था। लगभग अर्द्ध मूर्छित जैसी थी वह । हमने आस-पास की ढाणी में रहने वाले लोगों से उसके उपचार के लिए कहा तो किसी ने कोई खास ध्यान नहीं दिया। हमें लगा कि यह अधमरी गाय पूरी ही मर जायेगी। अगर इसकी चिकित्सा न की गई तो कौए व गीध इसको नोच देंगे। 115 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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