Book Title: Kaise Sulzaye Man ki Ulzan
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 77
________________ परिणाम निर्मल नहीं हो जाते तब तक वह चाहे जितनी ध्यान-साधना करे, योग या तपस्या करे लेकिन मुक्ति और परमज्ञान उससे दूर ही रहा करते हैं । ' ब्राह्मी और सुंदरी ने कहा, 'हम समझ नहीं पा रही हैं कि आखिर बाहुबली के अन्तरमन में ऐसे कौनसे विकार और विकृतियाँ हैं जिनके कारण वे महान तपस्या करके भी अपने जीवन में मुक्ति को उपलब्ध नहीं कर पा रहे हैं ! ऋषभदेव ने कहा,‘बाहुबली ने जब संन्यास लिया तब उसके अन्तर्मन में यह विचार प्रकट हुआ कि पहले से ही मेरे छोटे भाइयों ने संन्यास ले लिया है और वे सारे संत भगवान के साथ हैं। अगर मैं भगवान के पास जाऊँगा तो संत मैं भी हूँ और मेरे छोटे भाई भी संत हैं लेकिन छोटे भाई पहले दीक्षित हो चुके हैं, अतः कहीं मुझे उन्हें प्रणाम न करना पड़े। बड़ा भाई होकर मैं अपने छोटे भाइयों के सामने जाकर झुकूं, यह कैसे हो सकता है? एक काम करता हूँ कि मैं स्वयं ही वन में जाकर आत्मसाधना करूँगा और परमज्ञान पाऊँगा, तत्पश्चात् ही अपने भाइयों के पास जाऊंगा ताकि वे मुझसे छोटे ही कहलाएँगे। ब्राह्मी - सुंदरी! याद रखो जब तक अन्तरमन में अहंकार का शूल चुभा हुआ और दबा हुआ है तब तक व्यक्ति अपने जीवन में मुक्ति का फूल खिलाने में कभी भी समर्थ नहीं हो सकता । जाओ, तुम लोग अपने भाई के पास जाओ और उसे आत्म-बोध दो कि वह अपने अहंकार को गिराये ताकि अपने जीवन में साधना के परिणाम को पा सके ।' उतरें, अहंकार के हाथी से अपने पिता से आदेश पाकर ब्राह्मी और सुंदरी बाहुबली के पास गईं । बाहुबली अपने ध्यान में लीन थे। उनकी सघन साधना देखकर ब्राह्मी - सुंदरी को लगा- 'ओह, ऐसी साधना तो दुनिया में किसी ने भी न की होगी' तब दोनों बहनों ने मंद-मंद स्वर में गीत गुनगुनाना शुरू किया 'वीरा म्हारा गज थकी ऊतरो, गज चढ्या केवळ नहीं होसी रे ।' - हे भाई! तुम हाथी से नीचे उतरो, हाथी पर बैठकर किसी को परमज्ञान उपलब्ध नहीं होता । जब बार-बार बाहुबली के कान शब्द गूँजने लगे तो बाहुबली की चेतना जाग्रत हुई। उनका ध्यान भंग हुआ और वे सोचने लगे,‘आवाज तो मेरी बहनों की है । ये मुझसे यह क्या कह रही हैं कि हाथी 1 68 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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