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की ओर आया है तो यह जवानी भी बुढ़ापे की ओर जाने वाली है। याद रखें कि बीती हुई जवानी कभी लौट कर नहीं आती और आया हुआ बुढ़ापा कभी लौटकर नहीं जाता। फिर कैसा अहंकार! गोरा रंग है तो अहंकार न हो और काला रंग है तो कोई हीनता न हो। श्मशान में जलने वाले हरेक इन्सान की राख का एक ही रंग होता है। गोरे की राख गोरी और काले की राख काली होती हो, ऐसी बात नहीं है। राख के स्तर पर सबका रंग एक हो जाता है।
प्रत्येक व्यक्ति सुन्दर दिखने की कोशिश करता है लेकिन बाह्य सौंदर्य और रूप का कैसा अहंकार ! यह सुंदर शरीर एक दिन बुढ़ापे की ओर जाने वाला है. लम्बे काले बाल सफेद होने वाले हैं या झडने वाले हैं, दांत टूटने वाले हैं, दृष्टि कमजोर होने वाली है, झुर्रियाँ पड़ने वाली हैं फिर कैसा रूप और क्या सौंदर्य? चालीस साल पहले जिन अभिनेत्रियों के लोग दीवाने थे, आज वे अपने घर में अकेली पड़ी हैं और उन्हें कोई पूछने वाला भी नहीं है । हरेक का रूप ढल रहा है। आखिर मिट्टी की काया मिट्टी में ही मिलती है। मिट्टी का आदमी किस बात का अहंकार करे! - जब भी मेरे मन में अहंकार की छोटी-सी ग्रंथि भी जगती है तब मैं जमीन और आसमान को देखता हूँ। जमीन को देखकर मेरा मन कहता है - ललितप्रभ, तू किस बात का अहंकार कर रहा है? एक दिन तुझे भी इस जमीन में समा जाना है, मिट्टी में मिल जाना है और आकाश को देखता हूँ तो मन कहता है – 'बंदे, किस बात का अहंकार, एक दिन तुझे भी ऊपर उठ जाना है।'
एक दिन हम जा रहे थे सैर को, इधर श्मसान था, उधर कब्रिस्तान था। एक हड्डी ने पाँव से लिपटकर यूँ कहा,
अरे देखकर चल, मैं कभी इंसान था। यह जीवन का अटल सत्य है । इसलिये अपने सौंदर्य का अहंकार न करें बल्कि उसे सुरक्षित रखने के लिये औरों को मधुरता दें और मधुरता ही ग्रहण करें। जो भी अहंकार ग्रस्त हो रहा है वह यह जान ले कि उसका सौंदर्य ढलने वाला है और जिनके पास विनम्रता है, उनका सौंदर्य अक्षुण्ण है।
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